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ये कलयुग का इंसान है - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

ये कलयुग का इंसान है

  • 524
  • 4 Min Read

ये कलयुग का इंसान है ...

आज इंसान ही इंसान का दुश्मन है ...
बाहर है अपनापन , अंदर से मैला मन है ...

छल कपट कूट कूट के भरा पड़ा है ...
बेईमानी का चोला पहने शान से खड़ा है ...

पहले अपनो का विश्वास व प्यार जीतता है ...
फिर अपनो से ही विश्वासघात करने लगता है ...

भूल जाता है वो अपनो के एहसानों के तले दबा है ...
जो भी बना है , उनके ही दम पर तो वो लायक बना है ...

ये भूलकर आज उनको ही लात मारने चला है ...
भूल गया है जो शान- शौकत है , जहां तू उनकी ही बदौलत खड़ा है ...

पीठ पीछे वार करके , झूठी मित्रता का दिखावा करते है ...
कुकर्म , धोखा , द्वेष के सहारे मानवता का गला घोंटा करते है ...

कही न कही खुद ही खुद के लिए गड्ढा खोदने चला है ...
तुझे दर्द का पता चलना है क्योंकि तू खुद को अंदर से ही खोखला करने चला है ...

ये सतयुग नही , ये कलयुग है ...
आज इंसान ही इंसान का दुश्मन है ...

ममता गुप्ता

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Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 4 years ago

यथार्थ

Naresh Gurjar

Naresh Gurjar 4 years ago

बहुत खूब

Gita Parihar

Gita Parihar 4 years ago

यह दुनिया है , यहां भांति-भांति के लोग हैं।

Neelima Tigga

Neelima Tigga 4 years ago

वास्तवता

Sarla Mehta

Sarla Mehta 4 years ago

सच्चाई है

Mamta Gupta4 years ago

धन्यवाद आ0 जी

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

चैतन्यपूर्ण

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

जी सत्य कहा इंसान ही इंसान का दुश्मन है।

Mamta Gupta4 years ago

आदरणीया नेहा जी धन्यवाद

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