कवितालयबद्ध कविता
हा !मैं थोडी बदल गईं हूँ
या यूं कहूँ थोडी सँभल गई हूँ।
ठोकर खाकर थोडी निखर गईं हूं
जिंदगी जीने के हुनर थोड़ा सीख गई हूँ
अब ना किसी से उम्मीद रखतीं हूँ
ना किसी से हमदर्दी रखती हूँ
क्योंकि समझ गई हूँ यह दुनिया
एक छलावा हैं, बस चारो तरफ
छल कपट का बोलबाला हैं,
अब ऐसे लोगो से,दूर रहने लगी हूँ
खुलकर मैं अब जीने लगी हूँ
अपने लिए ,अपने सपनो के लिए।।
अब नही रखती किसी से कोई मतलब
नही हैं मुझे किसी की तलब
मस्त रहती हूँ अपनी मस्ती में।
अपने ही दिल की छोटी सी बस्ती में।।
अब बस थोड़े उसूल बना लिए है।
प्यार से बोले जो प्यार पायेगा।
शूल से बात करेगा तो शूल ही पायेगा।।
अब मेरे इरादे साफ है।
जैसा को तैसा सबक
अब नही करना माफ हैं।।
ममता गुप्ता