कविताछंद
अरिल्ल छंद
बंसी मधुर बजाये मोहन
सुनकर सब बन जाये जोगन
चलो श्याम की बने सुहागन
पंथ निहारे बनकर दुल्हन
बरस रहे हैं मुझ पर बादल
प्रेम मग्न मैं बह गयी पागल
होश कहाँ है तुमको पाकर
अब तो गले लगाओ आकर
पी की डगर बड़ी मनभावन
झूम - झूम कर आया सावन
मैं घर से निकली बन ठनकर
निकला छलिया ऐसे छलकर
- नेहा शर्मा