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अपनी बातों को कितनी आसानी से हँसकर कह जा रही थी आकृति। पर आरव का दिल.. वो तो चाहता था ये बारिश बस यूँ ही चलती रहे। काश कि बाबा का आशीर्वाद सच हो जाए पर वो ये भी जानता था इस शहर में अपने रोज नहीं मिलते एक अनजान से फिर मिलने की उम्मीद क्या करू? हाँ नहीं मांगेगा वो नंबर या अड्रेस.. नहीं चाहता वो खुद को आम लोगों सा कमजोर दिखाना की आकृति को लगे वो भी सब लोगों जैसा मौकापरस्त है। पर दिल का कोना जैसे चाहता था कि बस ये पल यहीं थम जाए।
बातों बातों में कब रात गुम हो चली और सुबह की पहली लोकल की ख़बर भी आ गई। बारिश कम हो चली थी। शहर का सारा सैलाब अब आरव के अंदर था। उन दोनों ने वो लोकल पकड़ी। डोंबिवली आया और आकृति बाय कहकर उतर गई। क्या सच उसके लिया इतना आसान था या आरव कमजोर हो चला था। उसने कभी सपने में नहीं सोचा था कि किसी अजनबी से एक रात में इतना लगाव हो सकता है। कई लड़किया कॉलेज और ऑफिस में मिली होंगी पर ऐसा कभी एहसास आया ही नहीं। काश कि बुढ़े बाबा की बता सच होती।
घर पहुंच कर आरव को आई की बहुत डांट सुननी पड़ी। नाश्ता कर के फटाफट आरव बिस्तर पर चला गया ताकि नींद पूरी हो सके। पर नींद तो वो गुलाबी सूट वाली उड़ा ले गई थी। आरव को करवट बदलते देख आई ने बोला
"सुन आरू! एक बार लड़की का फोटो तो देख ले.. मैंने उनको ज़बान दी है दो दिन में हाँ ना बताने का.. कल भी सुबह तू बहस कर के चला गया.. पसंद आई तो नार्ली पूर्णिमा पर मिल लेंगे ना "
आरव पहले से परेशान था पर माँ का चेहरा देखा और माँ का फोन हाथ में लिया कि देख लेने में क्या हर्ज है।
आरव को लगा जैसे छत फ़ट पड़ी और सीधे ईश्वर का हाथ उसके सर पर। ये.. ये तो आकृति है.. मतलब बप्पा का आशीर्वाद फलित हो गया।
" आरू! ये डोंबिवली से है और अच्छे काम पर है.. और.."
"बस आई कुछ मत बता.. तू नारली पूर्णिमा पर साखर पुड़ा (सगाई) रखवा दे .. मुझे लड़की और रिश्ता दोनों पसंद है.."
कहकर आरव आई से लिपट गया। आई भी आरव के इस प्रतिक्रिया से काफी अचंभित थी पर खुश भी की उसने बात रख ली।
" अच्छा बाबा! एक बार लड़की से बात तो कर ले " आई की इस बात पर आरव मान गया। भला वो खनकती मीठी आवाज जो अब उसके जिंदगी में मिश्री बन कर घुलने वाली थी, उसको कैसे इंकार कर सकता था वो। बेचैन दिल लिए फोन घुमाया, डर यह भी था कि कहीं आकृति ने रिश्ता नामंजूर कर दिया तो।
" हेलो! मैं आरव.. हम आज मिले थे ना लोकल में "
कुछ देर उस तरफ सन्नाटा रहा फिर वही खनकती आवाज आई
" हाँ मैं पहचान गई तुम्हारी आवाज " आकृति की आवाज में अब शर्म दस्तक दे रही थी।
" आई ने मुझे तुम्हारी तस्वीर दिखाई तो मैं तो.. मैं क्या कहता.. शायद बप्पा ने मेरी सुन ली " आरव ने अपनी बात आगे रखी।
" हाँ मुझे भी आकर पता चला कि बाबा तुम्हारे बारे में ही बात कर रहे थे.. मुझे तुम पसंद हो.. पर तुम्हें क्या मैं पसंद आऊंगी..अनजान होते हुए भी तुम संग कितना कुछ शेयर किया.. पता नहीं तुम क्या सोच रहे होगे " आकृति सच में अपनी बात कितने आराम से रख रही थी और आरव मारे खुशी शब्द नहीं फूट रहे थे।
" प्लीज! कुछ मत बोलो.. यह नियति थी हमारी जो हमे अपनी अरेंज मैरिज में जबरदस्त वाला लव भी महसूस करना लिखा था.. और अभी तो तुम मुझे और जानने का समय लो.. सुनो बस ना मत कहना "
"हा हा हा.. भला वडा पाव के बदले में मिले दूल्हे को कैसे ना कहूँ मैं? चलो कल मिलते है..उसी लोकल में " आकृति के फोन कटने के बाद आरव की आँखों में अब नींद तैर आई क्योंकी अब उसे सपने में अपनी आकृति को देखने का पूरा हक था। कानो के पास ही मद्धम संगीत बज रहा था .. हम्म.. एक लड़की भीगी भागी सी..।
ख़ूबसूरत सी सुखान्त रचना..!
जी हार्दिक आभार आपका