कविताअतुकांत कविता
अंतर मिट गया
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क्यों सब तरफ से मुड़कर नजरें
किसी एक पर अटक जाती है
ये तो मैं भी नहीं बता पाउअगा
क्यों किसी के अाने से धड़कन बढ़ जाती है |
लगता है ठहर सा गया है सब कुछ
उसके इर्द गिर्द
क्यों चाहता किसी से मन मिलना
शायद कली की एक ही तो परिणति है
फूल बनकर खिलना |
यही प्यास मेरी भी ,यही उनकी भी है
यहाँ मंजिल और राह अलग कहाँ
राह ही तो मंजिल भी है
जब से उनसे मिला भूल गया अंतर
अब मत पूछा ये उनका दिल ,ये मेरा दिल है |
पहचान तो मैं भी न पाऊँ
अब अलग अलग कहाँ दोनों में एक ही शामिल है |
कृष्ण तवक्या सिंह
30.09.2020