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"वक्त"
कविता
वक्त
बीते वक्त का एक घाव ज़हन में रह गया है
अपने सपने
इतना हँसो कि रोने का वक्त ना मिलो
इसलिए दुःखी हूँ
वक्त करवटें बदलता है
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
वक्त नहीं
व्वक्त
कैसे तूफां होगा शांत
वक्त से तकरार
ये आग
ग़ज़ल
हर वक्त बस है धोखा...
तेरे ना होने से
तेरे ना होने से
मुस्कुरा कर वह कह के चले गए।।
वक्त की तलवार की धार
दो फूल
मित्रता दिवस (Freindship Day)
मैं आज हूँ
वक्त का मारा हुआ
वक्त के इस काफिले में
वक्त के इस काफिले में
*कालचक्र*
*कालचक्र*
मैं आज हूँ
वक्त के इस काफिले में
क्या रखा है वक्त गवाने [प्रथम भाग]
वर्तमान से वक्त बचा लो तुम निज के निर्माण में द्वितीय भाग
वर्तमान से वक्त बचा लो पंचम भाग
आत्म ज्ञान
वक्त
वक्त
तुम्हारे साथ गुजारा हुआ वक्त
बेटी की बिदाई के वक़्त पिता द्वारा बेटी को दिया गया वक्तव्य
बुरा वक्त
तन्हाई
वक्त बुरा था ⏱️
वक्त के विरुद्ध
लम्हे पुराने
आख़िरी ख़्वाहिश
कहानी
"बीता वक्त "
" वक्त के अनुसार " 💐💐
" अपराधिनी " 🍁🍁
लेख
एक इडियट के डायरी नोट्स
यूँ इल्जाम ना लगा
किसी की मुस्कुराहों पे हो निसार
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