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"क्यू"
कविता
पहल्यां ही बता देंदी
2020 तू क्यूं रुठा है रे?
बुरा क्यूँ मानूँ
मुश्किल हो गया
अपना क्या है
सब उत्तर छोटे पडे़
ना जाने क्यूँ
लुकाछुपी
बँटे आज हम जाने क्यूँ
गुमनाम जिंदगी
बजादो बिगुल
क्यों चुप बैठो हो परमपिता ?
इन प्रश्नों की शरशय्या पर
आज भी पीछा करती हैं
ओ प्यारे पपी
एक दीया शहीदों के नाम जलाएँ
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
मुझे कुछ कहना है
साल भर अपना रिश्ता रहा
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
बिटिया कहे
बिटिया कहे
साहस पर मुक्तक
पचपन में मन खोजे बचपन
गज़ल
बँटे आज हम जाने क्यूँ
नव - प्राण हुआ
पर्यावरण सप्ताह विशेष हाईकू
क्या यही जिंदगी है?
क्यूंकि तू ग़म है...
कठपुतली
ताजमहल
ताजमहल
इच्छाएँ
बस तू ही तू
परिवर्तन कहीं आस-पास है
शुभ कर्मों में देरी क्यूँ
आ, जिंदगी, पास आ
कैकयी तुम क्यूँ बदनाम हुई?
इच्छाऐं
ज़हरीला इन्सान
कविता की आहट
अब भी समय है "इंदर" सुधर क्यूँ नहीं जाते
येह तेरा अहसास मेरे साथ मौजूद क्यूं रहता है
क्यूं करे कोई नफ़रत उनसे
क्यूं उतावले होते हो
पीछे रहबर के क्यूं चलें बशर जब हम अपनी ही डगर चलें
खुद को छलते क्यूं हो
*क्यूं कोसते हो अपने आज को*
सहर-ए-वस्ल जाती क्यूँ है
ज़ाहिर अपनी तजवीज़ हम क्यूं करें
वजूद हमारा कायम अख़लाक के भरोसे
खुश रहें इन्तज़ार क्यूं करें
बे-सबब तकरार क्यूँ करें
वफ़ा करने वाला तन्हा क्यूँ है
बच निकला उसे रब मिला
लोग सुबह के अख़बार क्यूँ हैं
हे अवधपति हे रघुनन्दन
आप क्यूँ हैं उनके बिना नाखुश
दिल से लोग क्यूँ नहीं निकल पाते
बुरे वक़्त से क्यूं घबराता है
बाद मरने के क्यूं ज़माना मेरा दीवाना हुआ
खुद क्यूँ खुद केलिए बुरा सोचो
राजी हमसे कोई था ही नहीं
दावते-अदावत क्यूं करें हम
रंज-ओ-ग़म क्यूँ करें हम
फ़साना-ए-सफ़र अपना क्यूं बेदम लिखें
फ़जूल की उम्मीदमें अपनाही तमाशा क्यूंकरें हम
अपना ही तमाशा फिर क्यूँ बनाएं हम
अपना ही तमाशा क्यूँ बनाएं हम
इन्सान क्यूँ इतना परेशान रहता है
खाते-पीते उम्मीद-ए-दिलासा क्यूँ करें हम
सब्र और शुक्र कीजिए
कहानी
आखिर क्यूँ ? कब तक ?
क्यूँ बुलाते चाय पर ?
क्रिसमस
आख़िर क्यूँ, कब तक
अनाथ भाग 5
लेख
मौन
चैन से जीने दो हमें
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