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शब्दगंध - Anil Makariya (Sahitya Arpan)

कहानीसस्पेंस और थ्रिलर

शब्दगंध

  • 600
  • 18 Min Read

शब्द गंध●

वो न सुगंध थी, न दुर्गन्ध, कुछ ऐसी गंध जिसे परिभाषित करना शिव के लिए नितांत कठिन था ।
वैसे शिव जैसे लेखक के लिए किसी भी चीज को शब्दों में परिभाषित करना बिल्कुल ऐसा था, जैसे किसी पुष्प का मंद बहती बयार में परागकण प्रसारित कर देना ।
"हाँ"
अचानक ही शिव के मुख से निकला ।
"बिल्कुल ऐसी ही तो गंध है शैलजा की , जैसी बारिशो में कदली के भीगे तने से आती है या किसी पुरानी किताब को खोलकर, अपनी नाक बीचोबीच टिका देने पर जो महसूस होती है, ठीक उस तरह की "
शिव अपने घर परिवार से दूर एक आदिवासी गाँव में ठहरा हुआ था ।
इस गाँव में उसका अपना एक कमरे का छोटा सा घर था, बड़े-बड़े खेत खलिहानों के बीचोबीच ।
वो साल में एकाध बार अपने लेखन कार्य को पूरा करने के लिए एकांतवास के उद्देश्य से आता रहता था ।
इसबार गाँव के मुखिया ने किसी लड़के या आदमी की जगह शैलजा नामक आदिवासी षोडसी को घर की साफ-सफाई के लिए भेज दिया ।
न शैलजा की भाषा शिव को समझ आती थी, ना ही शिव की भाषा शैलजा को, पर सांवली कोमलांगी शैलजा अपना हर काम शिव के कुछ बोलने से पहले ही अंजाम तक पहुंचा देती ।
शिव आया तो था अपना लेखनकार्य पूरा करने पर उसकी सुबह ही शुरू होती शैलजा और उसके बदन से निकलती रहस्यमय गंध से और रात हो जाती उस गंध को विचारो से बाहर आने में ।
"नहीं, ये गंध पसीने की नहीं हो सकती, पक्का ये पहाड़न किन्ही ख़ास पौधों या पेडों से होकर गुजरती हुई मेरे पास पहुचती है और अपने साथ उनके पत्तो या तनो की गंध ले आती है,
पर किसी और के बदन से ये गंध क्यों नहीं आती ?
क्या है इस गंध में जो मुझे यूँ मदहोश कर देती है?"
रोज-रोज एक ही विषय पर आकर दिमाग अटकता तो शिव झल्ला उठता ।
"कल मुखिया से किसी और को भेजने का कह देता हूँ।"
सुबह की लालिमा अभी छाई ही थी, की शैलजा के अंदर आने से पहले ही उसकी गंध शिव के नथुनो में प्रविष्ट कर गई, जाने क्यों आज गंध पनीली-सी थी जैसे कोई अगरबती पानी में भिगोकर जलाई गई हो ।
हल्की भीगी-भीगी सी शैलजा के उघडे सांवले कंधे से पानी की बूंद बांह की ओर फिसलती हुई कहीं लुप्त हो गई ।
भीगी-भीगी सी लटों से एक ओस सी बूंद दो छोटे से पर्वतों के बिच जा गिरी और किसी नदी के मानिंद निचे की ओर बह चली ।
"शैलजा ..आज हल्की बारिश हुई है क्या ?"
आज गंध से मदहोश लेखक को सही शब्द नहीं मिल रहे थे ।
मिल भी जाते तो शैलजा कहाँ समझ पाती उसके लेखक हृदय से उपजे शब्द ।
शैलजा तो बनी ही थी हृदय को समझने के लिए ना की उसकी उपज को।
शैलजा ने हवा में अपने हाथो से बादलो को जन्म दिया और फिर हवा में नाचती हुई उसकी उँगलियाँ उन बादलो से बारिश की तरह निचे की ओर चल पड़ी ।
शिव कुर्सी से उठ खड़ा हुआ अनायास ही शैलजा की थिरकती उंगलियाँ अपने हाथो में ली और अपनी नाक शैलजा की गीली गर्दन पर रख दी ।
हिमालय के पेड़-पौधो से छनकर आने वाली हवा जैसी महक शिव का मिलाप शैलजा से करवा रही थी ।
शैलजा के नयन शिव की गर्म साँसों के ताप से बंद हो चुके थे ।
शैलजा अपना अस्तित्व अपनी गंध के साथ शिव को सौंप चुकी थी ।
प्रकृति की खूबसूरती को निहारता ब्रह्मांड एक फूल पर ठहरे दवबिंदू में विलीन हो गया ।

भोर होते ही शिव शैलजा का इन्तजार करने लगा पर वो नहीं आई ।
शिव मदहोश सा केवल अपनी गंध को महसूस कर रहा था, जोकि शैलजा की देन थी ।
उसके नहा लेने के बाद भी शैलजा की गंध शिव के बदन को छोड़ने को तैयार न थी ,जैसे शैलजा का अस्तित्व शिव के हृदय को छोड़ने को तैयार न था ।
"साहिब आज महाशिवरात्री है रात को गाँव के मंदिर जरुर आइयेगा।"
मुखिया खुद शिव को बुलाने आया था ।
"मुखिया जी आपने वो जो काम के लिए लड़की भेजी थी शैलजा ....।" शिव के मुंह से निकला प्रश्न उस नाम तक पहुँचते ही कहीं विलीन हो गया ।
"अरे हाँ हाँ...मैंने ही आपको नाम बताया था 'शैलजा' पर वो तो मेरे आपको बताने के दुसरे दिन ही शादी करके पास के गाँव में चली गई थी,
माफ़ करना ..इसबार मैं आपकी देखभाल के लिए किसी का इंतजाम नहीं कर पाया। "
मुखिया तो हाथ जोड़कर चल दिया लेकिन शिव के आसपास अब भी वही रहस्यमयी गंध मौजूद थी ।

(स्वरचित एवं मौलिक)
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अद्भुत स्रजन

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

जबरदस्त शब्दों से रचना की..👌👌

Kanak Harlalka

Kanak Harlalka 3 years ago

बेमिसाल लेखन..। शिव और शक्ति का अपार्थिव मिलन जैसी ही अद्भुत हे यह कहानी..

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

अद्भुत, निशब्द करता लेखन है लेखक का 👌👌

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत उम्दा!

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बेहतरीन कथा

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