कवितालयबद्ध कविता
स्वरचित मौलिक:: सुरभित मुखरित पर्यावरणीय
मै पतित पावन प्रकृति,
वसुंधरा का वरदान हूं।
धानी रंग की चुनरीया मेरी,
लताओं पुष्पों से सजी धजी हूं।
हिम पर्वत आकाश,
को धारण करती हूं।
नदियों संग कल कल करती,
समुद्र के संग जा मिली हूं।
जो तुम मेरा पथ पहचानो,
हो जाए सुरभित मुखरित पर्यावरण।
असंख्य गुलो की मै पटरानी,
बाग बगीचों संग नेह लड़ाती।
खग मृग कृप संग धमा चौकड़ी करती,
कोयल संग मधुर संगीत सुनाती।
क्षण भर जो तुमने विश्राम लिया,
जैसे निष्प्राण से मुझको प्राण मिला।
हो गई सुरभित मुखरित पर्यावरण
जो तुम मेरा संवर्धन, संरक्षण करो।
प्रफुल्लित हो जाए वातावरण,
तुम्हें भी निष्प्राण से प्राण मिल जाए।
-- प्रियंका पांडेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तर प्रदेश