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मीरा समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम - Poonam Bagadia (Sahitya Arpan)

कहानीप्रेम कहानियाँलघुकथा

मीरा समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम

  • 388
  • 12 Min Read

(लघुकथा)

शीर्षक: "मीरा-समर्पण... एक निष्ठुर से प्रेम"

"तुम्हें मेरा सच जान कर दुःख तो होगा, परन्तु ये ही सच है..मैं तुमसे शादी नही कर सकता...!" केशव ने मीरा से नज़र चुराते हुए दबी जुबान से कहा।

...तो वो सब क्या था केशव...?
एक घुमड़ते हुये तूफ़ान को खुद में ही दफन करती मीरा शांत स्वर में केशव को अपलक दृष्टि से देखती अपने प्रश्नों के उत्तर केशव की आँखों मे खोजती हुई बोली।
"मीरा सच को स्वीकार करो..!" केशव मीरा की सजल दृष्टि से सिहर उठा।

"मेरे शांत जल की भांति ठहरे हुये जीवन मे तुमने प्रेम का कंकड़ क्यो उछाला केशव....?
मीरा के स्वर की सौम्यता अब केशव को विचलित करने लगी थी।
"वो... वो सब....वो सब मैंने तुमसे झूठ बोला था मुझे तुमसे रत्तीभर भी प्रेम नही है.. केशव पागलों की तरह चीखने लगा।
मैं सिर्फ मणिका को चाहता हूँ उसी से शादी करूँगा..!
...और मैं सिर्फ तुम्हे चाहती हूँ..!
मीरा सजल नेत्रों से अब भी अपलक केशव को ही सौम्यता से निहार रही थी.।
"मीरा... मत चाहो मुझे इतना, मैं तुम्हारे प्रेम के काबिल नही हूँ .. मैंने हमेशा तुम्हारी भावनाओं से खेला है तुम्हे उपहास का पात्र बना कर खुद को सकुन दिया है..! हमेशा झूठ बोला तुमसे की मैं तुमसे प्यार करता हूँ..!
केशव न जाने क्यो उसकी सजल नेत्रों से भयभीत हो उठा था उसके आँखों में आकर ठहरी लम्बे समय से झिलमिलाती नमी के गिरने की प्रतीक्षा उसे प्रतिक्षण ग्लानी के मार्ग पर धकेल रही थी।
परन्तु वो अश्रु बूंद तो जैसे मीरा के नेत्रों मे ही घर कर गई न गिरने का नाम ले रही थी और न ही सूख जाने को तैयार थी।
उसकी अपलक निहारती आँखों मे बसी उस अश्रु बून्द से आहत हो कर केशव ने मीरा के गाल पर जोरदार थप्पड़ मारा और जोर से चीखा
"मैं निष्ठुर तुम्हारे प्यार के लायक नही हूँ ... मुझे अपनी नज़र से गिरा दो..!"
कहते हुए केशव दोनो हाथ जोड़ कर तत्क्षण ही धड़ाम से अपने दोनों घुटनों के बल बैठ मीरा के समक्ष रो पड़ा।
केशव को ऐसी दशा में रोते देख मीरा तड़प उठी। उसने अपने थप्पड़ का दर्द भुला कर तुरन्त ही केशव को सम्भालते हुये सस्नेह अपने सीने से लगा लिया ।
"केशव तुम्हारे प्रति मेरा प्रेम केवल आँखों के आकर्षण से वशीभूत हो कर नही है, जो पलक झपकते ही तुम्हें नज़र से गिरा दूँ..!"
कहते हुए मीरा ने केशव पर अपने आलिंगन को और जोर से कसा।
"तुम मेरे दिल में बसते हो केशव... और वहाँ से तुम्हें.. तुम, तुम्हारा झूठ और मैं... तो क्या दुनिया की कोई ताकत नही गिरा सकती..!"
कहते हुए मीरा ने अपनी आँखों को बंद किया.. मीरा की आँखों से गिरने वाले समर्पण अश्रु अब केशव का चेहरा ही नही उसकी आत्मा व उसकी निष्ठुरता को भी धो रहा था..!

©️✍🏻 पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

मर्मस्पर्शी

Bhawna Sagar Batra

Bhawna Sagar Batra 4 years ago

हृदयस्पर्शी

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

मर्मस्पर्शी प्रेमकथा..! आत्मिक समर्पण..!

Poonam Bagadia4 years ago

सादर आभार सर जी ....!??

The Indian writers 11

The Indian writers 11 4 years ago

Amazing??

Poonam Bagadia4 years ago

Thanks......

Neelima Tigga

Neelima Tigga 4 years ago

खूबसूरत कहानी , बधाई

Poonam Bagadia4 years ago

शुक्रिया नीलिमामैम...???

Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 4 years ago

Nice

Poonam Bagadia4 years ago

Thanks...???

दादी की परी
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