Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
रावण की व्यथा - Kumar Sandeep (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

रावण की व्यथा

  • 439
  • 5 Min Read

मैं जानता हूँ
सारा जगत यह जानता है कि
मैंने माँ सीता को भगवान राम से दूर कर
किया था अपराध बड़ा
अहंकार से वशीभूत था मैं
मेरे मन में मैं था समाया
तो क्या इस गुनाह की सजा
मनुज तुम इस तरह दोगे
हर वर्ष रावण का पुतला
जलाकर आखिर क्या देना
चाहते हो संदेश जगत को।।

अरे! मनुज
जलाना ही है कुछ तो
अपने मन से अहंकार जला दो
है मेरा अनुभव कहता
जिसके मन में है ख़ुद को सर्वश्रेष्ठ
समझने का भ्रम
उसका है सर्वनाश सुनिश्चित एक दिन।।

अरे! मनुज
हर बार पुतला निर्मित कर, दहन कर
मत यूं मुझे सताओ तुम
मुझमें भी थी खूबियाँ कई
उन खूबियों को भी तो आत्मसात करो
हाँ, मेरी ज़िंदगी से भी सीखो तुम।।

अधर्म के मार्ग पर चलोगे जब कभी
तुम्हारी ज़िन्दगी में मुश्किलें आएंगी अनगिनत
सदा चलो धर्म के मार्ग पर
मन से मैं की भावना मिटा दो सर्वदा के लिए
सकारात्मक विचार मन में भरो
नकारात्मक विचारों से नाता तोड़ो।।

©कुमार संदीप
मौलिक, स्वरचित

1603619420.jpg
user-image
Mr Perfect

Mr Perfect 3 years ago

सार्थक संदेश

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत.. ही...प्रसंशनीय....कविता...।

Swati Sourabh

Swati Sourabh 3 years ago

बहुत ही उम्दा सृजन

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद आपका

Anju Gahlot

Anju Gahlot 3 years ago

बेहतरीन भाव व्यंजना की है संदीप....वाह / 'अहंकार के वशीभूत' कीजिये '

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद मैम आपका मार्गदर्शन हेतु

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

सुंदर

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद दी

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद दी

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

सुंदर

Kumar Sandeep3 years ago

धन्यवाद दी

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg