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बचपन हमें जीने दो - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बचपन हमें जीने दो

  • 504
  • 5 Min Read

बचपन हमें जीने दो

किताबों की बोझ तले,ना बचपन हमारा दबने दो
कागज की कश्ती से ही,विचारों की धारा में बहने दो

भीगने दो बारिश की बूंदों में, बुलबुले बनाकर उड़ाने दो
सजाने दो अपनी सोच से दुनिया को,दीवारों को भी रंगने दो

सावन के झूले पर बैठ, हवाओं से बातें करने दो
लड़ने दो दोस्तों के साथ, उंगलियों को जोड़ फिर दोस्ती करने दो

लेकर कर चुन्नी अपने सर पर,सजने दो संवरने दो
बनाने दो मिट्टी से खेल खिलौने,तोड़ने दो फिर जोड़ने दो

गोद से उतर कर जहां में, बढ़ाने शुरू किए हैं अपने कदम
ना बांधो बेड़ियां अभी से,लड़खड़ाने दो ,खुद ही संभलने दो

कवच तोड़ कर अभी जहां में,पंख निकलने शुरू हुए हैं
ना कतर दो अभी से इनको,परिंदों को उड़ने दो ,गगन चूमने दो

बोलना सीखा है अभी तो हमने,थोड़ी बात अपनी भी कहने दो
मत रोक टोक करो हर बात पर,थोड़ा सीखने दो समझने दो

मत छीनो हमसे हमारा बचपन,हमें गलतियां करके भी सीखने दो
मत खोने दो हमारी मासूमियत,बचपन को हमें अभी जीने दो
।।। स्वाति सौरभ।।।
स्वरचित एवं मौलिक

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Swati Sourabh3 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद सर ?

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

अतिसुंदर...।

Swati Sourabh3 years ago

Thank you maim ?

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत सुंदर

Swati Sourabh3 years ago

शुक्रिया मैम ?

Khushi kishore

Khushi kishore 3 years ago

अद्भुत रचना

Swati Sourabh3 years ago

शुक्रिया सर ?

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बेहतरीन बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है।

Swati Sourabh3 years ago

शुक्रिया मैम ?

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