कहानीसामाजिकप्रेम कहानियाँ
शीर्षक : "चरित्रहीन कौन..??"
"स्टेशन आने ही वाला था, प्रिया ने सोचा "जनाब को बता दिया जाये कि उनके जन्मदिन को विशेष बनाने के लिये, उनकी होने वाली पत्नी उनके पास आ रही है....
ये सोच कर प्रिया ने फिर से विनय को फोन किया....
इस बार भी उसका फोन स्वीच ऑफ था...
प्रिया के कोमल हृदय में कई डर और सवालों के तार झंकृत हो उठे...
"ऐसा तो कभी नही हुआ ... विनय हमेशा फोन का विशेष ध्यान रखते है, फ़िर आज फोन बंद क्यों...??
"कहीं विनय की तबीयत तो नही बिगड़ गई....
अपने विचारों में उलझी प्रिया स्टेशन पर उतरी...
वो जल्द से जल्द विनय के पास पहुँचना चाहती थी...
विनय को आश्चर्यचकित करने के लिये दूसरी चाबी से दरवाजा खोला और चुप चाप अंदर चली गयी..
जैसे ही प्रिया ने विनय के कमरे का दरवाजा खोला, वो लगभग गुस्से से चीख़ते हुऐ बोली..
"ये... ये कौन है..??
विनय ने हड़बड़ा कर आँखे खोली और खुद को संभालते हुए बोला
"ये मेरी दोस्त है....
"दोस्त.... दोस्त है तो तुम्हारे बेड रूम में क्या कर रही है..??
प्रिया गुस्से से तिलमिलाते हुये बोली
विनय को समझ नही आ रहा था वो क्या बोले
"ये मुझे प्यार करती है....
और तुम...??
"मैं तो तुम से ही प्यार करता हूँ....विनय ने प्रिया को फुसलाने की कोशिश की..
"तो इसके साथ क्यो हो तुम..??
"बाबू... प्लीज मुझे माफ़ कर दो...
आखिर मैं इंसान ही हूँ, गलती हो गई...
"अब अपनी गलती सुधारो और इस लड़की से ही शादी कर लो.... रोते हुये प्रिया ने अपनी अंगुली से सगाई की अँगूठी निकल कर विनय के हाथ पर थमा दी..
"शादी...... और इससे...
अरे चरित्र हीन है ये... जो बिना शादी के ही ये सब...
विनय अपनी बात पूरी भी नही कह पाया था कि उस लड़की ने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर रख दिया...
"मुझे तुमसे प्यार था, इसलिए मैं तुम्हारे साथ थी...
पर तुम्हे तो किसी और से प्यार था, फिर तुम मेरे साथ क्यों थे....??
कहते हुए वो फुट फुट कर रोने लगी...
इस बार गुस्से से भरी प्रिया ने विनय को तमाचा लगाया और आक्रोश युक्त सुर्ख आँखो से उसे देखा, मानो खामोश नज़रों से उसकी शख्सियत को तौल रही हो की असल मे, चरित्र हीन कौन है...??
-पूनम बागड़िया "पुनीत"
(दिल्ली)
स्वरचित, पूर्णतया मौलिक रचना
'नजरों' और 'शख्सियत ' कर दें ।आपने 'नजरो' और 'शख्शियत' लिखा है। रचना अच्छी है।
जी शुक्रिया मेम..!?
विनय के '' चरित्र 'की सच्चाई सामने आ गयी..! सुन्दर रचना.
जी सर.. शुक्रिया..! सच्चाई ज्यादा दिन छिपती नही एक न एक दिन तो आनी ही थी सामने..!??
बहुत बेहतरीन लिखती हो तुम ।
शुक्रिया..!
बहुत खूब चाभी को चाबी कर लेना। ?
जी..! माफ कीजियेगा..! अभी करती हूँ