कवितालयबद्ध कविता
भूख,इंसानियत और खुदा
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भूखा भूख से तड़प रहा,रोटी नही है तकदीर में
खुदा कोई रहमत नही बची,क्या तेरी जागीर में
ये कैसी तेरी दुनिया मौला,देता न कोई निवाला
जो लाखो फूक दे रहा है,मेरी ही हाले तस्वीर में
दया-धर्म और नेकी यहाँ,इबारत बस लिखी हुयी
इबारत लिख कैद अब जो,किताबो संग जंजीर में
दिल मे हमदर्दी का भाव,बस देखने का छलावा है
भूखे का दर्द समझता वही,भूख जिसकी लकीर में
ईमान बेच खाया है अपना,इंसानियत कैसे समझेगा
खुदा आज भी बैठा मिलेगा,उन्ही किसी एक फकीर में
स्वरचित-संदीप शिखर मिश्रा। #वाराणसी(U. P)