कविताअतुकांत कविता
जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो
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जी चाहता है
मैं तुझे प्यार कर लूँ
चुम लूँ तेरे माथे को
ये जिंदगी
जी चाहता है
और तुझे बाहों में भर लूँ
पर तू इतनी दूर है मुझसे
कि यह हो नहीं सकता
बस मन ही मन में सोचता हूँ
वक्त कहता है
कभी तो पास ले आऊँगा
तुम चलते रहो
तुमसे तुम्हारी साँसों को मिलाऊँगा |
भविष्य में भूतकाल का दर्शन कराऊँगा
मैं ले जाऊँगा तुम्हें वहाँ
जहाँ मिलते हैं तीनों काल
वहीं तेरे कपाल पर लिखा जाएगा सवाल
शायद जीवन भर तुम्हे ये परेशान करेंगे
जिएंगे ये तेरे उद्देश्य बनकर
यही खोलेंगे द्वार
इन्हें हल करके ही
तुम कर जाओगे भवसागर को पार
यही तुम्हें बतलाएगा तुम्हें तुम्हारा धर्म
इसी में तो छुपा है तुम्हारा कर्म |
कृष्ण तवक्या सिंह
30.09.2020.
जिंदगी कैसी है पहेली !इसे हल करना इतना भी आसान नहीं है।
कठिन तो है पर करना भी तो जरूरी है