कहानीसंस्मरण
शीर्षक: 'वो प्यारा डर"
बचपन मे अंधेरे से डर लगता था, क्योंकि बहुत सी कहानीयो में पढ़ा व सुना था अंधेरे में भूत आ जाते है!
किशोरावस्था में आने के बाद जाना भूत अंधेरों के ही गुलाम नही वो दिन के उजालो में भी आ सकते हैं!
कभी कभी डर में उलझा अनुभव ह्रदय की गहराइयों तक झनकार छोड़ जाता हैं!
जी हाँ ...! किशोरावस्था में घटित एक घटना ने मुझे बहुत ही प्यारे डर की परिधि से अवगत कराया था!
जिसे शायद आप अभी तक भूले नही होंगे! साहित्य अर्पण पर मेरा पहला प्यार नामक प्रतियोगिता में, मैने उस संस्मरण को लेखनी रूप में "एक प्यार ऐसा भी" का नाम दिया था!
उस संस्मरण में स्पष्ट लिखा था किस तरह महीनों फोन पर बात करने वाला वो प्यारी सी शख्सियत असल मे इस दुनिया मे था ही नही!
अतः उस घटना के उपरांत मेरी समझ मे ये तो आ ही गया था कि भूत हमेशा डरावने नही होते!
कुछ क्यूट से मन को भाने वाले भी होते है!
हालांकि भूतों के प्रति वो मेरा अंतिम डर था जो सूरज के साथ ही समाप्त हो गया....!
फिर भी उस घटना को याद कर ह्रदय अनजाने डर से आज भी भर जाता है!
ओर अनायास ही अभिनेत्री सोनाक्षी सिन्हा का संवाद कानो में धमाके सा प्रतीत होता हैं..!
थप्पड़ से डर नही लगता साहब.. प्यार से लगता है..!
©️पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना
बढ़िया मैंने पढा था वह संस्मरण। वाकई बहुत सी बातें खभी भुलाए नही भूल सकते
जी नेहा जी...चाहे तो भी नही भूल पाते..!
अत्यंत विलक्षण और अविस्मरणीय अनुभव..!!
जी सर कुछ अनुभव अविस्मरणीय हो ही जाते हैं