कविताअतुकांत कविता
कामयाबी
जीवन में वो मंजिल ही क्या,
जिसे पाना बहुत आसान हो।
छाले ना पड़े पैरों में,
ना जख्म के निशान हों।।
कामयाबी के वो सपने ही क्या,
आंखें सुजी, ना हुई लाल हो।
जुनून हो बस कामयाबी की,
चाहे दिन हो या रात हो।।
वो जीत का मंजर ही क्या,
जिसका किया ना इंतिजार हो।
आंसू ना निकले आंखों से,
करे खुशी का इजहार जो।।
ना लिखे सपने सैकत पर,
जो मिट जाए गर तूफान हो।
लिखा है मंजिल पाहन पर,
मिटता ना कभी निशान जो।।
मिली वो पहचान ही क्या,
जिसे बतानी बार - बार हो।
चले पीछे - पीछे कारवां,
करे तुम्हारी जय -जयकार जो।।
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित