Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
Sahitya Arpan - meera tewari
userImages/646/7AC16C48-AE3D-4DD6-BA28-207DC57B698F_1640451130.jpeg

meera tewari

'शिंजनी'

No Info Added By Writer Yet

Writer Stats

  • #Followers 0

  • #Posts 14

  • #Likes 0

  • #Comments 0

  • #Views 1104

  • #Competition Participated 0

  • #Competition Won 0

  • Writer Points 5520

  • Reader Stats

  • #Posts Read 39

  • #Posts Liked 0

  • #Comments Added 2

  • #Following 1

  • Reader Points 215

  • कविताअन्य

    कान्हा

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 83
    • 6 Mins Read

    मैं तो मौन हूँ कान्हा,
    मस्तिष्क में तुम ही तुम हो।
    मेरे आनन की मुस्कान हो तुम,
    मेरे अधरों का मान हो तुम।
    मैं तो——————-।,
    कहकर सबसे तुम हो मेरे अवि,
    लजाऊँ ध्यानकर तेरी छवि।
    मैं तो ————————-।
    दिल की
    Read More

    कान्हा ,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    दर्पण

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 75
    • 4 Mins Read

    दर्पण
    दर्पण बड़ी ज़ोर से हँसा
    मेरे चेहरे को देखकर ।
    किस उम्मीद पर झाँका तुमने,
    क्या मैं तेरी तारीफ़ करूँगा।
    गए वह जमाने जब तू गुल थी
    मैं तुझपे फ़िदा था तू गुलज़ार थी।
    हंसी मेरे लबों पे आई कुछ इस
    Read More

    दर्पण,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    दर्पण

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 67
    • 4 Mins Read

    दर्पण
    दर्पण बड़ी ज़ोर से हँसा
    मेरे चेहरे को देखकर ।
    किस उम्मीद पर झाँका तुमने,
    क्या मैं तेरी तारीफ़ करूँगा।
    गए वह जमाने जब तू गुल थी
    मैं तुझपे फ़िदा था तू गुलज़ार थी।
    हंसी मेरे लबों पे आई कुछ इस
    Read More

    दर्पण,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    अभिलाषा

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 88
    • 5 Mins Read

    कोई अभिलाषा नहीं,
    कि जग में जाना जाऊँ,
    नाम नहीं सुनना अपना,
    कर्तव्य पथ पर बढ़ता जाऊँ।
    दुखियों की मैं सेवा करूँ,
    अनाथों को अपनाऊँ।
    वीरों के पथ के रज कण,
    माथे पर चन्दन सा मैं सजाऊँ।
    जठराग्नि शान्त
    Read More

    अभिलाषा ,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    वसंत

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 76
    • 3 Mins Read

    रागवृंत ने ली अंगड़ाई,
    आई देखो वसंत ऋतु आई।
    पक्षी कलरव करने लगे,
    कोयल ने कूक सुनाई।
    अनंग राज का बढ़ा साम्राज्य,
    कलियों ने भी त्यागी लाज।
    मधुप करके रस की आस,
    नव-कुसुमित पुष्पों को राग सुनाने लगे।
    अंबुआ
    Read More

    वसंत,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    परिशुद्ध प्रेम

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 115
    • 3 Mins Read

    राधा लजाए अखियन मुस्काये,
    तरूवर पीछे छुप-छुप जाए,
    देखो मन ही मन शरमाए।
    जाने राधा मींचूँगी नयना,
    तुम ही तुम हो समाए।
    वृंदावन की कुञ्ज गलिन में गिरिधर,
    राधा-राधा शोर मचाए।
    यमुना तट पर गोपियों संग
    Read More

    परिशुद्ध प्रेम,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    ज़हरीला इन्सान

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 54
    • 6 Mins Read

    साँप पहलू में है,तुम जानते नहीं,
    मैंने झाँका है ,तुम झाँकते नहीं।

    बड़े-बड़े ख़्वाबों में मशगूल हो सब,
    फण विषधर का क्यूँ पहचानते नहीं।

    अपने-अपने स्वार्थों में इतना मसरूफ है हम,
    पन्नग की चाल देख
    Read More

    ज़हरीला इन्सान,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    दरीचे

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 75
    • 3 Mins Read

    दरीचे से देखते थे छुप-छुप के उनको,
    आजकल वह चाँद सा चेहरा नज़र नहीं आता।
    मायूस खडें है अपने दरीचे में,
    आजकल परिन्दे भी ख़फ़ा है हमसे।
    कुछ ख़्वाब देखे थे उस हीरे की कनी के लिए,
    खबर नहीं, क्यों ?मेरे
    Read More

    दरीचे,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    कैकयी तुम क्यूँ बदनाम हुई?

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 72
    • 5 Mins Read

    एक बार सपने में देखा महारानी कैकयी को,
    मैं पूछ बैठी कैकयी से
    कैकयी तुम क्यों बदनाम हुई?
    भरत से अधिक था तुम्हें राम पर नेह,
    राम रहते थे सदा तुम्हारे गेह,
    सूरज चन्दा वारती थी निशदिन तुम ,
    मेरे राम
    Read More

    कैकयी तुम क्यूँ बदनाम हुई?,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    नववधू

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 89
    • 4 Mins Read

    नव किसलय सी सुकुमारी नव वधू,
    गृह प्रवेश कर तनिक सकुचाई।
    मानो गुलाब की कली,
    काँटों के मध्य घबराई।
    मृग नयनी की सहमी नज़रें,
    यहाँ -वहाँ फिराई।
    जड़ से उखाड़ कर रोपा है मुझको,
    बाबुल ने इस उपवन में।
    हरियाऊँगी
    Read More

    नववधू,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअन्य

    अहसास

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 64
    • 5 Mins Read

    पत्थरों के शहर से जो गुज़री मैं,
    हर पत्थर मुझे निहारता सा लगा,
    उसके सीने में भी दिल है,
    जो धड़कता सा लगा।
    मैं बैठकर सुनने लगी दर्द भरी,
    उनकी कहानी।
    जो कह रहे थे ,पूछ रहे थे अपनी ज़ुबानी।
    क्या हम इन्सान
    Read More

    अहसास ,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअतुकांत कविता

    सपूत

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 68
    • 5 Mins Read

    🙏🏻🌹जो सपूत है भारत के,
    वह चैन से कहाँ बैंठेंगें?
    सीना चीर गेंदें दुश्मन का,
    लहू से आचमन करेंगें।
    अब भूल जाओ कुरंगों को,
    छिप जाओ अंधेरी सुरंगों में।
    अब भारत का सूर्य प्रखर है,
    समेट लो अपने डैनों
    Read More

    सपूत,<span>अतुकांत कविता</span>
    user-image

    कविताअन्य

    सिंहावलोकन

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 76
    • 13 Mins Read

    स्वंय सिद्धा सी विमोहित मैं आज अपने जीवन का लेखा-जोखा करने बैठी तो मूढ़ मति सी विभ्रम अवस्था में जड़ रह जाती हूँ।
    क्या यही सार -हीन जीवन मेरे अतीत का सार है?क्या दर्पण के उस पार इतना भयानक अंधकार
    Read More

    सिंहावलोकन,<span>अन्य</span>
    user-image

    कविताअतुकांत कविता

    कठघरा

    • Edited 2 years ago
    Read Now
    • 102
    • 5 Mins Read

    कठघरा
    इतने ख़ंजर उतरे हैं इस दिल पर,
    जिसने भी साधा निशाना ग़ज़ब का लिया।
    जान के अनजान बनते रहे हम,
    अपनी मौत का सामान मैंने अजब किया।
    मंजिल तो थी ही नहीं उधर,
    जिधर मैंने कदमों को बढ़ा दिया।
    जुल्म
    Read More

    कठघरा,<span>अतुकांत कविता</span>
    user-image