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"हमको"
कविता
असली शिक्षक कौन
खुद में खूबसूरत है हम
हमको फ़र्ज निभाना होगा
सौगात तिरंगे की
ए-माँ तुम खुदा की भी खुदा लगी हमको
सौगात तिरंगे की
हो जाओ तैयार साथियों
अल्फाबेट
हे कृष्ण! कितना आसान है
सौगात तिरंगे की
सालती है बशर हमको येह ख़ामोशी औलाद की
विसाले-हबीब की बशर सदा हमको रहती आस है
हारने को कुछ बचा ही नहीं
करते नहीं हैं याद हमको हबीब हमारे
ग़मे-हिज्र न खुशी मिलन की हमको
ख़ुलूस किस शय का नाम है"
उनको नहीं हमारी ख़बर
मजनू बनजायें गर हमको लैला मिले
दश्त-ए-शनासाई में हमको दोस्ती बड़ी हरजाई मिली
यारब हमको तेरीही हिफ़ाज़त है
तीसरा हमें गवारा नहीं बशर
नसीब हमको भी अहद-ए-फ़राग़त
अच्छाई ने हमको बुराई से सिला दिया
जिंदगी को देखकर पसीना आया
गैरों और बेगानों पर भी ऐतिबार किया
जीना हमको गवारा न हुआ
हमको तो इल्म ही नहीं
वक़्त नहीं हमको
भोली सूरत बुलाती है वापस घर हमको
बताए तो सही हुई क्या है ख़ता हमसे
फ़ितरत काफिराना हमारी
तहरीर कहीं नज़र न आई
जिंदगी हमको जीकर चली गई
बुढापा हमारा मज़लूम होगा
उम्रभर हमको काम आईं माँ की दुआएं
यादों की सफ़र”
हमको अपने घर लौटना भी होगा
हमको चलने से मतलब
हमको न हुआ नसीब साया-ए-सुकूने-क़ल्ब
वही झूठ बोला जिसका झूठ कभी झूठ नही लगा हमको
हमको ही है नहीं ख़बर हमारी
ये ज़िन्दगी के रेले
हरगिज़ किसीसे कम नहीं
हमको मालूम है जात-ओ-औक़ात हमारी
बच्चे आजकल कब किसीको सजदा करते है
हमको हमारा खुदा मिल गया है
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