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"मुलाक़ात"
कविता
मुलाक़ात हबीब से ख़्वाब में कम न थी
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
बात नहीं होती
*लम्हों की मुलाक़ातें हैं*
मन की बात न हुई
मुलाक़ात की गुंजाइश रखिए
निजी ख़्यालात
वस्ल-मुलाक़ात के तहज़ीब को न भूल जाना
मुंतज़िर दोनों तरफ़ अहबाब मुलाक़ात के
अंधेरों से जुगनुओं की बात होती है
फिरसे बिछती बिसात हर मात के बाद
हिज़ाब नहीं करते मुलाक़ात करते वक़्त
समझते ही नहीं
अपनी हैसियत ओ औक़ात याद रख
मुमकिन नहीं मुलाक़ात है
नर्म लहजों में बात करें
उड़ी हुई है नींद हमारी वस्ल-ओ-मुलाक़ात में
फोन पर बात होगई मान लियाकि मुलाक़ात होगई
होती नहीं खुद ही से खुदकी मुलाक़ात
हमारी उनसे वस्लो-मुलाक़ात ही दवा है
जिंदगी में जिंदगी से न हुई मुलाक़ात
रात रात न हुई
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