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"नींद"
कविता
गहरी नींद
Kya neend aati hai tumhe
पूर्णिमा का चांद
"सपना " 💐💐
महताब देख
हुई नींदें हराम रातों की
*चैनकी नींद सो जाता है*
*नींद है तो ख़्वाब नहीं*
हुई नहीं नसीब शब-ए-नींद
नींद औरों की उड़ाकर
न दिन चैन देगा न नींद चैन देगी
नींद को आने में देर हो जाती है
रातों की नींद गंवाई है
रातों की नींद गंवाई है
सब से ज्यादा कीमती
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
जमाने लगने लगे हैं सहर होने में
नींद रात-भर आती नहीं है बशर
हम उनकी यादों में खोए थे
मैं चैन की नींद सो रहा था
कर्म के सज्दे में सर करने वाले
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
उड़ी हुई है नींद हमारी वस्ल-ओ-मुलाक़ात में
जीनाही छोड़दे बशर ग़मे-रंजो-मलाल में
मुफ़लिस का सुकून तो देखो सड़कों पर जाकर
ख़ामुशी मेरी उड़ाकर रखदेगी नींद तुम्हारी रातों में
लेख
चिंता चिता समान है
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