कविताअतुकांत कविता
गहरी नींद में सोना है मुझे
धरती की बाहों में
बादलों की छाव में
शर शराती हवाओं में
गुलाबों की खुशबू में
रोशनी से परे
एक गहरे अंधकार में
डूबना है मुझे,
ना सुबह का सूरज
ना रात के चांद तारे
ना उजाले से महकती
रोशनी,
समय का ना कोई चक्र
ना घटते दिन वार महीने
शरीर का ना मोहमाया
ना सुगंध ना दुर्गंध
केवल सुन्य काल हो
ना आगे निकलने का डर
ना पीछे छुट जाने की परेशानी
भविष्य की ना कोई परवाह
ना अतीत वर्तमान का भय
मनमर्जी ही मेरी अहम हो
गहरे काले अंधकार में
ना दिए की रोशनी में
मुझे सोना है अब एक
गहरी नींद में
सोना है मुझे गहरी नींद में,
अंजू कंवर