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"ज़रूरी"
कविता
ज़रूरी नहीं के हर मुफ़लिस बिकने वाला हो
*ज़रूरी राब्ते निभाना हुआ*
सपने देखना ज़रूरी है
कोई किसी केलिए ज़रूरी नहीं हो सकता
ज़रूरी है जीते-जी चेहरों पे मुस्कान लाना
शायद मसाइल का कोई हल भी हो
उसी का आस्तां ज़रूरी था क्या
मन में होना ज़रूरी है
सुकूनै-क़ल्ब केलिए नींद ज़रूरी
कुछ हादसात भी ज़रूरी हैं
जगमगाता है अक़्सर घर बेटियों वाला
औक़ात होना ज़रूरी है
हरजगह गुड़ी पड़वा हो ज़रूरी नहीं
क़ामयाबी केलिए तुम्हारा यक़ीन ज़रूरी है
ज़रूरी नहीं
खुदसे मिलनाभी उतनाही ज़रूरी है
परवरिश में ऐहतियात भी ज़रूरी है
किसी केलिए धड़कना भी ज़रूरी है
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