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साइड इफेक्ट - Sushma Tiwari (Sahitya Arpan)

कहानीहास्य व्यंग्य

साइड इफेक्ट

  • 400
  • 15 Min Read

दरिया किनारे के मकान में शिफ्ट होने के बाद श्रीमती जी को लगा कि शायद हमारे घरघुसड़ु नेचर में कौनो सुधार आ जाएगा। खिड़की से बाहर प्रकृति दिखेगी तो शायद ऑफिस से आकर टीवी में ना घुसड़ कर बालकनी में बैठेंगे उनके साथ चाय लेकर विहंगम दृश्य देखने के लिए। अब उन्हें का नहीं पता कि मुंबई आने का प्रयोजन था कुछ और, कर रहें है कुछ और। खैर! लॉक डाउन ने जैसे ही कमरे में लॉक किया हमे तो जैसे वरदान मिल गया। वर्षों से देखने के लिए पेंडिंग चल रहे फिल्म, सिरियल, वेब सीरीज सब निपटाई रहे थे कि उनके आखों की किरकिरी बन गए।
" शर्म तो ना आ रही होगी, हैं? सारी दुनिया को परिवार की पड़ी है और तुम जाने कौन संसार में व्यस्त हो?.. पाप नहीं लगेगा अगर ये टीवी से घन्टा भर का फुर्सत लेकर हमारे साथ बैठ जाओगे यहां बालकनी में.."
तीर चल रहे थे, बात भी सही थी। श्रीमती जी के साथ शाम के धुँधलके में हमे दरिया कम और नजदीक वाला मकान ज्यादा आकर्षित कर रहा था।
" तुम्हें नहीं लगता प्रिये! उस मकान में कोई गडबड़ी है " तीन मंजिले मकान के छत की ओर इशारा करते हुए हमने बताया।
" क्या गड़बड़ है?.. हमने वहाँ किसी को नहीं देखा कभी.." उनका जवाब सपाट सा था।
" वही तो कह रहे हैं कि... अब देखो जरा सीढियों वाले कमरे की लाइट.. कैसे बंद बुत्त हो रही है.. ऐसा लगता है कोई सिग्नल दे रहा है.. हो सकता है वहां कोई फँसा हो "
सुनकर श्रीमती जी की पुतलियाँ चौड़ी हो गई।
" पता है तुम्हें जेम्स बॉन्ड बनना था फ़िल्मों में.. पर ये हॉलीवुड नहीं है.. कुछ भी मतलब! "

" तुम ना परिस्थितियों की गंभीरता को नहीं समझती हो.. पता करने में क्या जाता है? "
हमारे समझाने पर मान गई कि कल जाकर पता करेंगे।
अगले दिन हम चौड़े होकर उस बिल्डिंग के वाॅचमैन से दो गज की दूरी बनाए हुए पूछ लिए।
" माजरा का है?"
हड़बड़ाहट उसके चेहरे पर दिख रही थी।
सारी बात सुनकर उसका जवाब आया
" लूज कनेक्शन है वहां और कुछ नहीं.. यहां कोई रहता ही नहीं " फिर वह अजीब नजरों से घूरने लगा।

श्रीमती जी का चेहरा उनके मिजाज़ का टम्प्रेचर बता रहा था।
" नाहक शर्मिंदा करवा दिए "
अगले दिन शाम की चाय पर हमारा ध्यान फिर वहीं गया। बत्ती शांत हो गई थी.. अब वहाँ अंधेरा था।
" हम ना कहते थे.. कोई बात है, अब देखो हमारे टोकते ही जाकर उन सिग्नल देने वालों को धरा होगा उसने.. मानो ना मानो कुछ गड़बड़ है..हमे पुलिस को बताना चाहिए " 007 वाला बैकग्राउंड साउंड दिमाग में तेज हो गया।
" हद्द हो गई तुम्हारी! हम बर्दाश्त किए जा रहे हैं, तुम परेशान किए जा रहे हो.. जानते हो कितनी फजीहत फील हुआ हमको? मास्क में भी पहचान लिया आज वो वाॅचमैन.. बोला भाभीजी बल्ब निकाल दिए है.. तुम ना आज से बस देख कर बताओ ये वेब सीरीज या नेटफ्लिक्स.. दिन भर दिमाग में फितूर। हमारी सुनो और नैट जिओ का सब्सक्रिप्शन ले लो, दिमाग को प्रकृति में लगाओ।"
सही बात थी। आईडीया बहुते बढ़िया लगा। वैसे भी नया कोई सीरीज आया नहीं था। कई दिन नैट जिओ देखने के बाद उस दिन जब हम शाम की चाय पी रहे थे तो अचानक दिमाग की बत्ती जली।
" सुनती हो! मैं ना कहता था कुछ तो गडबड़ी है.. दरिया किनारे का मकान है ..जरूर मगरमच्छो को छुपा रखा होगा.. तस्कर होंगे "
जाने क्या काट लिया श्रीमती जी को तमतमा कर खड़ी हो गई।
" समुद्र में मगरमच्छ?"
" ठीक है.. और कुछ.. व्हेल या शार्क.. कुछ भी? "
" साफ साफ कह दो, यहां बैठना पसंद नहीं "
चाय का प्याला उठाई और अंदर चली गई।
अब ऐसा क्या कह दिया हमने।
" तुम टीवी ही देखो.. वही ठीक है"
अंदर से आवाज आई।
हाँ ये भी सही है।

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

बहुत दिलचस्प और सामयिक रचना.

Sushma Tiwari4 years ago

जी शुक्रिया

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

बहुत खूब

Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 4 years ago

बहुत खूब

दादी की परी
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