कवितालयबद्ध कविता
*मासूम परिंदे*
मत काटो इनके पंखों को ये पानी के बुलबुले है ...
इनकी भी इच्छाएं है कुछ महत्वकांक्षाएं है ...
इनका भी एक प्यारा सा बचपन है ...
खेलने दो कूदने दो , थोड़ा मौज में रहने दो ...
कितनी अपेक्षा रखते हो , इस नन्ही सी जान से ...
करने दो थोड़ी शरारते , पंख लगाकर उड़ने दो ...
खुद की आशाओं का बांध उनपे न बांधते हुए ...
उनके बने हुए सपनो को उन्हें ही पूरा करना दो ...
करने दो उन्हें अपनी मर्ज़ी से हर काम , बनाओ उन्हें काबिल ...
उनके साथ अपनी मौजूदगी का बस उन्हें एक एहसास होने दो ...
बात बात पर डाँटना , जिद करने पर ये कहना ...
तुम बड़े हो गए हो , थोड़ा उसे अपना बचपन जीने दो ...
चलेगा , गिरेगा , उठेगा फिर संभलेगा वो सब करेगा ...
उसे अपने पैरो पे खड़े होने का एक मौका तो दो ...
पँख काट मत करो उसे कैद मासूम को ...
थोड़ी खुली हवा में तो सांस लेने दो ...
गलतिया वो भी करेगा , नकामयाब वो भी होगा ...
तुम कहो , दोबारा कोशिश करो फिर से होगा ऐसा साथी उसके साथ रहने दो ...
वो क्या चाहता है आपसे , उसके पास बैठ कर जानो जरा ...
माता पिता की जगह उसे एक दोस्त का आभास होने दो ...
बचपन ना छीनो इनसे , अपने सपनो में खुश रहने दो ...
कामयाबी के पँख लगाकर खुले आसमान में उड़ने दो ...
चखने दो इन्हें अपनी कामयाबी का मजा ...
इन मासूम परिंदो को अपनी शोख हवाओं में उड़ने दो ...
ममता गुप्ता