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जिंदगी की आखिरी शाम - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

जिंदगी की आखिरी शाम

  • 486
  • 6 Min Read

कर लो जीवन के
हर लमहे से
मासूम सा और
अल्हड़ सा यूँ प्यार
हो प्यार में ऐसा बुखार,
इस बुखार में हो जाये
छाकर, आकर यूँ शुमार,

हर गुरूर को
चूर-चूर करता सा,
हर कुंठा को
दूर-दूर करता सा
मन का एक ऐसा खुमार,
उमंगों की निष्पाप सी तरंगों का
ऐसा चढा़व, ऐसा उतार, ऐसा उभार

हर लमहे में मदहोशी हो,
बोलती सी खामोशी हो,
मन के हर कोने से उठती
पल-पल एक ऐसी पुकार,

हो हर कटुता का अंत,
हो रोम-रोम एक संत,
हो प्रेम का ऐसा बसंत,
जो लाये कुछ ऐसी बहार,

नेह की खुशबू समटे,
एक भीनी सी बयार,
तन-मन भिगोती,
सावन की ठंडी फुहार,

हर नयन में हो प्रेम-दृष्टि,
मन के कोने-कोने में एक
मधुर भाव की ऐसी सृष्टि,
हो बूँद-बूँद ऐसी वृष्टि,
सद्भाव की अद्भुत शक्ति,

तन-मन हो यूँ सराबोर,
नाच उठे हर मन का मोर,
हो चहकी-चहकी सी हर भोर,
महकी-महकी सी हर शाम,
हर लमहे का ऐसा अंजाम,
हर कटुता का हो काम तमाम,

हर एक मन
आप्तकाम हो जाये,
हर भावना यूँ
पूर्णकाम हो जाये,
हर चेष्टा यूँ इस तरह
निष्काम हो जाये,

हाँ, चुक जाने से पहले
जीवन की हर एक साँस का
जीने की हर आस का,
यूँ सार्थक, परमार्थक सा
इंतजाम हो जाये,

मिट जाये इस मन की
हर एक गंदगी,
जिंदगी यूँ बन जाये
एक बंदगी,

कौन जाने कब, कहाँ
और किस घडी़,
जिंदगी की कोई शाम,
होकर अनाम,
होकर बेनाम,
यूँ मौत के हाथों गुमनाम,
जिंदगी की आखिरी शाम हो जाये


द्वारा : सुधीर अधीर

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

बढ़िया

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर..!

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