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जीवन गाथा - पं. संजीव शुक्ल 'सचिन' (Sahitya Arpan)

कवितागीत

जीवन गाथा

  • 421
  • 4 Min Read

जीवन सुख का सार, क्षण में खो जाता है।
जाने क्या – क्या यार, पल में हो जाता है।।

चले ढूंढने मोद, गमों से पड़ गया पाला।
प्रात खुशी थी संग, हुआ फिर दिन बस काला।।
मोद भरा सम्राज्य, भी क्षण में खो जाता है।
जाने क्या – क्या यार, पल में हो जाता है।।

सुख – दुख रहते संग, यही है जीवन लीला।
गिरते महल विशाल, झोपड़ी बनती कीला।।
उमंग अरु उत्साह, कहाँ कब खो जाता है।
जाने क्या – क्या यार, पल में हो जाता हैं।।

आनंद कही अवसाद यही, जीवन है भाई।
हर्ष भरे जीवन में भी, खूदती है खाई।।
आमोद भरा संसार, भी क्षण में खो जाता है।
जाने क्या – क्या यार, पल में हो जाता है।।

कालचक्र के हाथ बंधा, मानव का यह तन।
भाग्यलेख से रहा हारता, हो कितना भी धन।।
धन – दौलत, सम्मान, सभी कुछ खो जाता है।
जाने। क्या – क्या यार, पल में हो जाता है।।

पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर), पश्चिमी चम्पारण, बिहार
9560335952

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Pallavi Rani

Pallavi Rani 3 years ago

👌👌👏

Maniben Dwivedi

Maniben Dwivedi 3 years ago

बहुत सुंदर

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बढ़िया...

प्रपोजल
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