कवितागीत
ये इनायत है ख़ुदा की, पूरी ख़्वाहिश हो रही है
तेरे मेरे मिलने की कोई साजिश हो रही हैं
मुझे भीगने दो ना यार बारिश हो रही है
कब से तुमको चाहा है,ये कैसे बताऊं तुमको
कितनी तुमसे मोहब्बत मैं कह ना पाऊं तुमको
मैंने तुमको यारा अपनी सांसों में बसाया है,
जब जब देखा मैंने आईना तुझे आँखों में पाया है
ये मेरी ही चाहत की नुमाईश हो रही है,
मुझे भीगने दो ना यार बारिश हो रही है...
तुम लम्हा लम्हा मेरी धड़कन में उतर गये
जैसे फूलों से बिखरे खूशबू तुम मुझमें बिखर गये
तुम्हें आदत सा बनाया नस नस से गुजर गये
तुम कैसा हाल मेरा मेरे यारा कर गये
लगता आज कुदरत से सिफारिश हो रही है
मुझे भीगने दो ना यार बारिश हो रही है .....
मुझमें इक ऐसी जगाह है जिसमें कि तु ही रहा है
मेरा दिल तेरा ठिकाना, तू दिल में बस रहा है
तेरे ख़्वाबों का समंदर मुझमें बह रहा है
जज्बात बहुत हैं गहरे, दिल तुझसे कह रहा है
मेरे जज्बातों की आज पैमाईश हो रही है
मुझे भीगने दो ना यार बारिश हो रही है......
~~ नरेश बोकण गुर्जर ~~
हिसार, हरियाणा