कविताअन्य
शीर्षक: "लव आजकल"
ये लव आजकल है,ऑनलाइन मिल ही जाता है
हर लैला कि पोस्ट पर मजनु बन लहराता है।
अब पहले सी बात नही, जो देख कर दिल शर्माता था
सालों साल आँखो की भाषा खामोशी से गुनगुनाता था।
अब ऑनलाइन मजनु है, hi के तुरन्त बाद ही लव यू का पत्ता फेका जाता है
यहाँ दिल से नही प्रोफ़ाइल से प्यार तोला जाता है।
फ़िल्टर pic पर जो मक्खी सा बेवजह भिनभिनाता है
ये लव आजकल है जनाब बिना दस्तक इनबॉक्स के दरवाजे खटखटाता है।
ऑनलाइन की गलीयों में, खरपतवार सा उग ही आता है
बिना बात की खाद से, खुद को पेड़ बनाता है..
डाल इश्क़ का झूला उसपर खुद ही पिंग बढाता है
ये लव आजकल है जनाब, जो हवा में ताजमहल बनाता है
नही रहा वो प्यार दिलो में, जो झोपड़ी में भी मुस्काता था
सच्ची श्रद्धा त्याग लिये, खुद को प्यार से महकाता था
मजबुरी में जो साथ छोड़ कर एक दूजे में ही बस जाता था
ये लव आजकल है जनाब स्टेटस सा चौबीस घंटे बाद खुद ही उड़ जाता है
फिर भी ऑनलाइन की गलियों में शान से ये मुस्काता है
ये लव आजकल है जनाब ऑनलाइन मिल ही जाता है..!
©✍🏻पूनम बागड़िया "पुनीत"
(नई दिल्ली)
स्वरचित मौलिक रचना
बहुत ख़ूबसूरत..! आजकल की वास्तविकता..!
सादर आभार आपका...! जी सर... आजकल के लव में लव तो हैं पर प्रेम नही..!
उम्दा कृति
धन्यवाद सर...!
धन्यवाद...!