कविताअतुकांत कविता
बालिका दिवस स्पेशल
कल को छोडो़ चलो आज को आज बनाते है,
भुला के सारे गलफत को एक नया अंदाज बनाते है,
अब तक बहुत हुआ सोहर इन बेटों के जन्म पर
हो बेटी के जन्म पर सोहर ऐसा रिवाज बनाते है!
क्या बेटो से कम है बेटियां किसी भी हिसाब से,
ये चाँद तक देख चुकी है झाक कर हिजाब से,
बेटियां हजार बार नवाजी है हमे कामयाब होकर
चलो अब हम भी बेटी को ही अपना नाज बनाते है,
हो बेटी के जन्म पर सोहर ऐसा रिवाज बनाते है...
कल को छोडो़ चलो आज को आज बनाते है,
भुला के सारे गलफत को एक अंदाज बनाते है,
बेटो ने तो बृधाआश्रम दी है कामयाब होकर भी,
बेटियां तो सिर्फ दान हुई है एक नायाब होकर भी,
कहते है कि सब कुछ बदल सा गया है जमाने मे
बेटियों की भी बारात निकले एेसा समाज बनाते है,
हो बेटी के जन्म पर सोहर ऐसा रिवाज बनाते है...
कल को छोडो़ चलो आज को आज बनाते है,
भुला के सारे गलफत को एक अंदाज बनाते है,
हर वक्त साथ है बेटियां कभी बेटी तो बहू के रूप मे,
देती है सुख सेवा सितल छाया बन जिंदगी के धुप मे,
बुढापे की लाठी तो टूट चुकी है, खूबसूरती मे डुब कर
तो चलो अब इन परियों को अपना परवाज बनाते है,
हो बेटी के जन्म पर सोहर ऐसा रिवाज बनाते है...
कल को छोडो़ चलो आज को आज बनाते है,
भुला के सारे गलफत को एक अंदाज बनाते है,
हम लिखे भी तो कितना लिखे बेटियों के बखान मे,
आप भी थोडा बिचार करो इन बेटियों के सम्मान में,
आपकी एक सोच ही बदलेगी सोच पुरे जमाने की
चलो अब "नाजिर" की कलम को ही आगाज बनाते है,
हो बेटी के जन्म पर सोहर ऐसा रिवाज बनाते है...
कल को छोडो़ चलो आज को आज बनाते है,
भुला के सारे गलफत को एक अंदाज बनाते है,