कविताअतुकांत कविता
धोखा
जो दे वो भी पछताए, जिसे मिले वो भी,
हम अक्सर जब हद से, ज्यादाकिसी पर
विश्वास करते, तो एक ना एक दिन उसका फल मिलना
ही होता है, और उस फल का नाम है धोखा।
हमारी बंद आँखो से जब किसी के झूठे ,
विश्वावस या प्यार का पर्दा हटता,
तो दिल हमारा यकीन नही करता,
आँखो से आँसू बस छलकते रहते,
हम बस कुछ दिन चुप से रहते,
दिल मे सब राज़ दफ़न कर लेते,
किसी के सामने कोई बात ना लाते,
जब हम किसी से धोखा खाते।।
धोखा जरूरी नही प्यार मे मिले,
व्यापार का भी हो सकता,
पर धोखा मिलने पर हाल,
सबका ऐसा ही होता,
तन्हा बैठ बैठ कर इंसान है रोता।।
अनिल धवन सिरसा
स्वरचित एवं मौलिक