लेखआलेख
# संस्मरण
लोकल ट्रेन का एक्सपीरिएंस
ज़िन्दगी इक सफ़र है सुहाना,,,सच ही है कामकाजी व्यक्तियों के लिए भी रोज़मर्रा का यह आवागमन यादगार लम्हें बन जाते हैं। अतः इस रोज़ की मुलाक़ात से रिश्तों की महक बिखरने लगती है। लेकिन कई बार राहें जुदा हो जाती है।और ज़िन्दगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मक़ाम वो फ़िर नहीं आते। बस यादें रह जाती हैं। दिल गुनगुनाने लगता है,,,छोटी सी ये दुनिया,,, पहचाने रास्ते,,,कहीं तो मिलेंगे तो पूछेगें हाल।
जी हाँ, कुछ ऐसी ही कहानी है रोज़ बोगियों में मिलने वाले मुसाफिरों की।
जहाँ तक मेरा सवाल है,मैं तो यूँ भी भावुक ठहरी। कोई प्यार से बोला नहीं कि अपना दिल ही खोल देती हूँ।एक गरीब सी वृद्धा मुझे कुछ खाते देख ललचाई सी नजरों से देखने लगती। मैं भी कुछ खाने का या पैसे देने लगी। बाद में पता चला कि वो भीख के पैसे से बीड़ी अफ़ीम आदि खरीदती है। बोगी बदल बदल कर अपना धंधा करती है।
याद है एक बच्चा मुझे पेन रुमाल बेचते अक्सर दिखाई देता। पता चला कि बीमार माँ के लिए करता है। एक दिन उसकी झोपडी में पहुँच गई। उसकी किताबों कपड़ो की व्यवस्था कर सरकारी स्कूल में भर्ती कराया। आज भी मिलने आ जाता है,कहीं प्यून बन गया है।
रोज़ के घण्टे भर के सफ़र में अच्छा खासा मनोरजंन भी हो जाता है। सामायिक चर्चाओं से अपडेट होते रहते तो साथ ही नई नई टिप्स भी सीखने को मिल जाती हैं।
सबसे बड़ी बात ,,,इस संसार में भाँति भाँति के लोग। कई बार चुपचाप बैठ कर भी मज़ेदार किस्से अनर्गल बातें बस सुनते ही बैठो।
एक वाक़या याद है,,,दो अनजान मिले। साथ बैठते बतियाते दोस्त से बन गए हमसफ़र। शादी में हम मुसाफिरों को बुलाना नहीँ भूले।
नए तज़ुर्बे जानकारी चाहिए तो बस ऐसा सफ़र शुरू करो।
सरला मैहता