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तब गांव हमें अपनाता है - Anjani Tripathi (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

तब गांव हमें अपनाता है

  • 164
  • 4 Min Read

शहरी जीवन के चकाचौंध में,
मानव जब ऊब जाता है
तंग शहर की गलियों में
जब बैठ के मन घबराता है ।
तब मन का पंछी भाग
गांव की गलियों में आ जाता है, तब गांव हमें अपनाता है।।

शहरों की ये भीड़ -भाड़
ये जन समूह का कोलाहल
निर्वाध दौड़ती दिनचर्या
थक जाता सारा आलम
तब गांव के शीतल छाया में,
मन भाग -भाग कर जाता है
तब गांव हमें अपनाता है ।।

ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं
के बीच सड़क पर
सरपट दौड़ती जिंदगी
क्लांत पथिक के लिए
पुरवाई के झोंकों सा
सुकून दे जाता है
गांवो की अमराई के नीचे
क्लांत पथिक जब आता है
तब गांव हमें अपनाता है।।

घड़ी की सूइयों से
कदमताल मिलाती,
अथक सी जिंदगी
बदहवास दौड़ती
मशीनी जिंदगी से
तालमेल बिठाती
जब गांव के पनघट पर
जाती है निगाहें
तब दिल को सुकून दे जाता है, तब गांव हमें अपना अपनाता है

स्वरचित मौलिक
@अंजनी त्रिपाठी
26/10/2020

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Bhawna Sagar Batra

Bhawna Sagar Batra 3 years ago

वाह बहुत सुंदर रचना

Anjani Tripathi3 years ago

धन्यवाद मैम

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

मिट्टी की भीनी खुशबू से ओतप्रोत

Anjani Tripathi3 years ago

धन्यवाद सर

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