कविताअतुकांत कविता
घायल परिंदा
ओ घायल परिंदे!
तू फिर से उड़ान भर।
अपने सपनों को दे,
नए हौसलों के पर।।
टूटा नहीं है तू,
हारा नहीं है अभी तक।
अपनी कोशिशों से ,
हिम्मत कर उड़ान भर।।
गगन चूम ले तू,
अपने फैला कर पर।
लड़खड़ा कर ही सही,
दिखा दे कदम बढ़ा कर।।
अपने जुनून से तू,
दीवारें तोड़ सकता है।
पत्थर को भी पिघला दे,
तुझमें वो क्षमता है।।
जाना है तुझे अभी तो,
आसमां के भी पार।
ठहरना नहीं है तुझे,
मंजिल कर रही इंतज़ार।।
ओ परिंदे ना भूल,
तू अभी जिंदा है।
तूफानों से लड़ जाता,
तू वही परिंदा है।।
अपने वजूद की ,
तू खुद कर तलाश।
रहना नहीं है तुझे,
बनकर एक जिंदा लाश।।
नई उम्मीदें ,
नए हौसलों के संग।
ओ घायल परिंदे,
तू फिर से उड़ान भर।।
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
यह हौसला और जूनून ही सब की ताकद बने , प्रेरक संदेश देती रचना
बहुत बहुत धन्यवाद मैम ?
अति अद्भुत और अतिउत्कृष्ट रचना।
धन्यवाद् सर ?