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घायल परिंदा - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

घायल परिंदा

  • 453
  • 4 Min Read

घायल परिंदा

ओ घायल परिंदे!
तू फिर से उड़ान भर।
अपने सपनों को दे,
नए हौसलों के पर।।

टूटा नहीं है तू,
हारा नहीं है अभी तक।
अपनी कोशिशों से ,
हिम्मत कर उड़ान भर।।

गगन चूम ले तू,
अपने फैला कर पर।
लड़खड़ा कर ही सही,
दिखा दे कदम बढ़ा कर।।

अपने जुनून से तू,
दीवारें तोड़ सकता है।
पत्थर को भी पिघला दे,
तुझमें वो क्षमता है।।

जाना है तुझे अभी तो,
आसमां के भी पार।
ठहरना नहीं है तुझे,
मंजिल कर रही इंतज़ार।।

ओ परिंदे ना भूल,
तू अभी जिंदा है।
तूफानों से लड़ जाता,
तू वही परिंदा है।।

अपने वजूद की ,
तू खुद कर तलाश।
रहना नहीं है तुझे,
बनकर एक जिंदा लाश।।

नई उम्मीदें ,
नए हौसलों के संग।
ओ घायल परिंदे,
तू फिर से उड़ान भर।।

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

ASHAVADEE RACHNA...!

Swati Sourabh3 years ago

हार्दिक आभार सर ?

Neelima Tigga

Neelima Tigga 3 years ago

यह हौसला और जूनून ही सब की ताकद बने , प्रेरक संदेश देती रचना

Swati Sourabh3 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद मैम ?

Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

Nice

Swati Sourabh3 years ago

Thank you maim ?

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

Vaah ji

Swati Sourabh3 years ago

हार्दिक आभार मैम ?

Khushi kishore

Khushi kishore 3 years ago

अति अद्भुत और अतिउत्कृष्ट रचना।

Swati Sourabh3 years ago

धन्यवाद् सर ?

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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