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मैंने जीवन जीना सीखा है - Swati Sourabh (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

मैंने जीवन जीना सीखा है

  • 1052
  • 4 Min Read

मैंने जीवन जीना सीखा है

है नहीं अभिमान मुझमें,
स्वाभिमान से जीना सीखा है।
देती हूं सम्मान सभी को,
पर ना अपमान सहना सीखा है।
झुकती नहीं कभी गलत के आगे,
ना गलत का साथ देना सीखा है।
जिन्दगी जीती हूं अपनी शर्तों पर,
ना सर झुकाकर जीना सीखा है।
गिरी हूं कई बार लड़खड़ाकर,
तब संभलकर चलना सीखा है।
ना बैठी कभी हार मानकर,
मैंने निरंतर बढ़ना सीखा है।
ठोकरें लगी हैं कई बार,
खुद को संभालना सीखा है।
मिले जिंदगी में कई बार धोखे,
धोखों से सबक सिखा है।
बिखरती नहीं मैं मुसीबतों से,
मुश्किलों से लड़ना सीखा है।
मजबूत हैं मेरे हौसले,
चट्टानों से टकराना सीखा है।
ना तोड़ती भरोसा किसी की,
मैंने उम्मीद जगाना सीखा है।
ना करना चाहती दुःखी किसी को,
मैंने रोते को हंसाना सीखा है।
निराशा में भी आशा रख कर,
मैंने जीवन जीना सिखा है।

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज रचना है।

Swati Sourabh3 years ago

Thank you maim ?

Khushi kishore

Khushi kishore 3 years ago

अद्भुत

Swati Sourabh3 years ago

शुक्रिया सर ?

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

साहसपूर्ण और सम्मान से जीने की कला..!!

Swati Sourabh3 years ago

शुक्रिया सर ?

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

बहुत सुंदर रचना ..!

Swati Sourabh3 years ago

धन्यवाद् मैम

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Swati Sourabh3 years ago

धन्यवाद् सर ?

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