कवितालयबद्ध कविता
मैंने जीवन जीना सीखा है
है नहीं अभिमान मुझमें,
स्वाभिमान से जीना सीखा है।
देती हूं सम्मान सभी को,
पर ना अपमान सहना सीखा है।
झुकती नहीं कभी गलत के आगे,
ना गलत का साथ देना सीखा है।
जिन्दगी जीती हूं अपनी शर्तों पर,
ना सर झुकाकर जीना सीखा है।
गिरी हूं कई बार लड़खड़ाकर,
तब संभलकर चलना सीखा है।
ना बैठी कभी हार मानकर,
मैंने निरंतर बढ़ना सीखा है।
ठोकरें लगी हैं कई बार,
खुद को संभालना सीखा है।
मिले जिंदगी में कई बार धोखे,
धोखों से सबक सिखा है।
बिखरती नहीं मैं मुसीबतों से,
मुश्किलों से लड़ना सीखा है।
मजबूत हैं मेरे हौसले,
चट्टानों से टकराना सीखा है।
ना तोड़ती भरोसा किसी की,
मैंने उम्मीद जगाना सीखा है।
ना करना चाहती दुःखी किसी को,
मैंने रोते को हंसाना सीखा है।
निराशा में भी आशा रख कर,
मैंने जीवन जीना सिखा है।
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज रचना है।
Thank you maim ?
साहसपूर्ण और सम्मान से जीने की कला..!!
शुक्रिया सर ?