कविताअन्य
चुनावी मुद्दा(हास्य व्यंग)
पांच साल बितने के बाद,
आ रही जनता की याद।
नेता जी घर- घर घूम रहे हैं,
चुनावी मुद्दा ढूंढ़ रहे हैं।।
सज गई वादों की दुकान,
सब बता रहे खुद को महान।
कोई देगा बेरोजगारों को रोजगार,
कोई करता बिजली सड़क पानी की बात।।
करने हैं केवल झूठे वादे,
कौन- से निभाने हैं आधे?
वोट बैंक की है बात,
मुद्दा बनेगा जाति- वाद।।
भड़कानी होगी विद्रोह की आग,
उठानी होगी मजदूरों की बात।
नारी सुरक्षा पर उठेगा सवाल,
गरीबों को भी मिलेगी सौगात।।
बस चुनाव तक की है बात,
सज जाए एक बार तो ताज।
फिर देखना है अपना ठाठ बाट,
जनता का कौन पूछेगा हाल?
प्रचलन में है परिवारवाद,
बेटा नहीं तो बेटी दामाद।
जिसके साथ बन जाए सरकार,
कभी इसके साथ कभी उसके साथ।।
लोकतंत्र का होगा हनन,
बिक जाएगा चौथा स्तम्भ।
जिस पार्टी में होगा दम,
क्या जनता तोड़ेगी सबका दंभ?
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
बेहतरीन व्यंग्य लिखा आपने मजा आया पढ़कर बस बीतने को ठीक कर लीजिए।
शुक्रिया मैम ?