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काश ! मुड़कर देख लेते - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

काश ! मुड़कर देख लेते

  • 300
  • 5 Min Read

# 24 सितंबर
चित्रलेखन
शीर्षक
काश ! कर देख लेते

जाने वाले चले जाते हैं
छोड़ कर अनुत्तरित प्रश्न
कठोर निर्णय लेने के पूर्व
काश ! पीछे मुड़ देख लेते
बस एक बार,आखरी बार

छूट जाता अम्बार दर्दों का
वृद्ध पिता की महती आशाएं
प्रियतमा के प्रीत भरे गान
नन्हें मासूमों का कातर रुदन माँकेअरमान,बहनके फरमान

रिश्तेदारों की हज़ारों अपेक्षाएं
जिगरी यारों की कई तमन्नाएं
सब कुछ किसे मिला जग में
पूरी होती कुछ अभिलाषाएं
अधूरी रहती कुछ आकांक्षाएं

क्यूँ भूल जाते हैं अपनों को
इतना पाया तो और पा जाते
काश!जानेवाले रख पाते धैर्य
संतोष सबूरी व सहनशीलता
'जान है तो जहां है' याद रखते

ग़लत विचार जब भी सताए
सुलझाओ उलझी गुत्थियां
खोल दो उहापोह की गठानें
अपनों को कहो अपनी बातें
रखो भरोसा व आत्मविश्वास

निराशाओं में जान गर देना है
जाएं सैनिक बन सरहद पर
दे कुर्बानी अपने देश के नाम
बेहतर है मिले शहीद का दर्जा
अमर होजाए नाम इतिहास में
सरला मेहता

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

koi Bhi Kadam Uthane Se Purva Ek Bar Punarvichar Zaruree Hai..!

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 3 years ago

ज़िंदगी से हैरान परेशान होकर ज़िंदगी न त्यागने की व ज़िंदगी में मुश्किलों का सामना डटकर करने की एक अच्छी सीख दी गई है इस रचना में।आज की पीढ़ी को इस रचना को पढ़कर इसमें निहित विचारों को आत्मसात करने की ज़रूरत है।

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर रचना

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत सुंदर

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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