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Sahitya Arpan - कोमल सोनी
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कोमल सोनी

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    कविताअतुकांत कविता

    अबोली आँखें

    • Edited 4 years ago
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    • 381
    • 4 Mins Read

    ' अबोली आँखें '

    सुनो बच्चे !
    ये तुम्हारी आँखें ,
    ' अबोली आँखें ' ,
    कुछ न कहकर भी ,
    कहती हैं बहुत कुछ ..

    ये कहती हैं
    तुम्हारे मन की
    कशमकश को ।
    सवालों में उलझी ,
    जिज्ञासा की
    अनवरत बहती धार को ..
    कि क्या निराशाओं
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    अबोली आँखें ,<span>अतुकांत कविता</span>
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    Champa Yadav

    Champa Yadav 3 years ago

    सुन्दर... कृति

    कोमल सोनी3 years ago

    बहुत आभार चंपा जी

    Mamta Gupta

    Mamta Gupta 3 years ago

    बहुत ही सुंदर रचना बालपन की अंबोली आंखे। कितने अच्छे से प्रकट किया है बालपन के सवालो को

    कोमल सोनी3 years ago

    आभार ममता जी

    Sushma Tiwari

    Sushma Tiwari 3 years ago

    बाल मन के भावों को दर्शाती हुई बेहद खूबसूरत रचना। सच मासूम और अब बोली आंखें ना बोलते हुए भी कितना कुछ बोल जाती हैं बस वह आंखें चाहिए जो उनके भाव को पढ़ सकें। तुम देखना सपने आसमां को छूने का कभी छोड़ना ना दामन उम्मीद का, बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियां हार्दिक बधाइयां

    कोमल सोनी3 years ago

    सुषमा जी आभार स्वीकारें

    Kumar Sandeep

    Kumar Sandeep 3 years ago

    बालक के मन की व्यथा का व बालक के मन मस्तिष्क में सकारत्मकता के संचार को रग-रग में उत्पन्न करने का एक अनुपम प्रयत्न किया गया है इस रचना में। निःसंदेह एक उत्कृष्ट काव्य सृजन।✍️??

    कोमल सोनी3 years ago

    संदीप जी आभार

    Sarla Mehta

    Sarla Mehta 3 years ago

    वाह

    कोमल सोनी3 years ago

    सरला जी बहुत आभार

    कविताअतुकांत कविता

    क्रांति

    • Edited 4 years ago
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    • 192
    • 3 Mins Read

    ' क्रांति '

    उद्वेलित है बहुत मन !
    उथल - पुथल मची है ,
    भीतर कहीं !
    कुव्यवस्था का दंश ,
    बार - बार
    उकसा रहा है..
    करने को
    ' क्रांति '
    मेरे भीतर के
    मध्यवर्गीय आदमी को !

    मैं भींचती हूँ ,
    कसकर अपनी मुट्ठियाँ ,
    नियन्त्रित
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    क्रांति ,<span>अतुकांत कविता</span>
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