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"बैठे"
कविता
कोरोना से डरो ना
यूँ ही बस बैठे ठाले
जान बैठे हैं
भूले-बिसरे चंद लम्हों के हवाले
दिल की आशा
चंद लम्हों के हवाले
कुछ लिखे
झरोखे यादों के
हमसफ़र
*सब दूरियां मिटा बैठे*
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
हालाते-हयात को बशर नसीब समझ बैठे
दर्द की दर्द से शिफा किए बैठे हैं हम
आगे की राहे-सफ़र
बैठे रह गए वो हाथ मलते रहे
हमने मान लिया कि यही सही है
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
रहे बैठे तिश्नगी लिए अरसा
शेर ओ शायरी
ख़ामोशियों से मुहब्बत का गुमाँ कर बैठे
चाहे जिस घर जा बैठे
जज़्बात सारे बेनक़ाब होगए
एक मर्तबा इन्सान बनकर तो बताओ
हम मुंतज़िर ही बैठे रहे
मौत न जाने कहाँ मर गई
तुमसे जो प्यार कर बैठे हैं 😍
हम तपती रेतपर ही बैठेहुए देखते रह गए
कहानी
घर अपना
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