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"ज़माने"
कविता
ज़माने की नज़र में
नेकदिल इन्सान भी बशर यहाँ गुनहगार हो जाते हैं
ज़माने ने जैसा समझा वैसा हुआ मैं
दिल के काशाने में खुदा रखते हैं
मिलने हमसे अहबाब पुराने ले आ
कलम की ताक़त क्या है
लोगों के दिलों में जगह बनाकर
पहले किसी ज़माने में इन्सान था
खुद को भी जरा बदल सकते हो
याद आते हैं सिर्फ़ भुलाने केलिए
वो देखने की कोशिश नहीं की जो उससे छुपाया गया है
अपना हो के न हो पल आने वाला
बादल कभी टिकसका है आस्मानों में
कहानी
किवाड़
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