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"इतनी"
कविता
चीटिंगखोर ज़िंदगी
जिंदगी तुम इतनी दूर क्यों हो
गुँजन
घर का द्वार खुला है
न्याय इतनी दूर क्यों ?
न्याय इतनी दूर क्यों ?
"पूनम की रात "
जिद मेरी इतनी सी
याद करे
जिंदा भी हैं के मरगए इतनी तो ख़बर रखो
अहसास भी रख लो
जून की उसके नसीब में नहीं है
वक़्त ही नहीं मिलता
माटी से शुरू माटी पर ख़त्म बात हयात की
औक़ात घरबार में
कहानी
समर्पण
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