कवितालयबद्ध कविता
कब तक पकड़कर बैठोगे पिया एक बात को।
कभी तो समझना ही होगा मेरे जज्बात को।
देखो मैं हारी हाँ पकड़ती हूँ कान सैयां
अब मत झटकों मेरा हाथ पिया।
अच्छा जैसा कहोगे वैसा मैं करती जाऊंगी।
आप मत रूठा करो मैं मनाती जाऊँगी।
मीठी सी बातें बम के गोले मत बनाओ सैंया
मैं हारी अब तो मान जाओ पिया।
देखो मुँह फूलकर मोटा हो गया है।
तुम गुस्सा हो पूरा जग सो गया है।
नाक अब मत फुलाओ पिया
मैं हारी अब मान जाओ पिया।
देखो तुम जो रूठे तो खाना ना बनाउंगी।
रखकर मौन व्रत मोबाइल में घुस जाऊंगी।
करूँगी चैटिंग नए दोस्तों संग।
तुम्हे स्क्रीन शॉट भेज - भेजकर चिढाऊंगी
देखो अब ज्यादा भाव मत खाओ सैंया
मैं हारी अब तो मान जाओ पिया।
अरे मेरी छुई मुई गुस्सा क्यों करती हैं।
मेरी धड़कन तुझसे ही तो चलती है।
मजाक कर रहा था मैं अब गुस्सा नही होऊंगा
तेरे साथ ही तो मैंने हर जन्म है जिये
लो नही हूँ गुस्सा अब मैं मान गया प्राण प्रिये। © - नेहा शर्मा
सही.. कहा... यूं.. होता.. हैं.. अक्सर.. आप बहुत अच्छा लिखती हो...
बहुत बहुत शुक्रिया ??
मीठी बात बम के गोले
शुक्रिया