कविताअतुकांत कविता
मैं हिन्दी हूं
मैं हिन्दी हूं,
थोड़ी घबराई हुई- सी हूं।
अपने अस्तित्व के खो जाने के डर से।
कहीं मैं भी सिर्फ किताबों की ,
भाषा बनकर ही ना रह जाऊं।
संस्कृत भाषा की तरह
स्कूलों में सिर्फ ना पढ़ाई जाऊं।
जिस तरह से अंग्रेज़ी को भाव दिया जा रहा है,
हिंदी बोलने पर अपमानित महसूस किया जा रहा है।
मुझे बोलने में लोग शरमाते हैं,
जब अंग्रेजी को मेरे सामने पाते हैं।
अंग्रेज़ी बोलने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं,
और मुझे बोलने पर शर्मिंदगी!
मैं राष्ट्रभाषा हिन्दी हूं,
मैं जन -जन की भाषा हूं।
मैं खुशी बयां करने की जरिया हूं,
किसी के दर्द में आंखों से निकली दरिया हूं।
मैं वही हिंदी हूं ,
जो अग्रेजों के खिलाफ,
लड़ी आजादी की लड़ाई ।
आजाद हो गई अंग्रेजों से,
अंग्रेजी से ना हो पाई।
ना सस्ती हो अंग्रेज़ी की पढ़ाई कभी
अमीरों की ना सही
गरीबों की भाषा बनकर तो रहूंगी कहीं
वरना खो ना दूं अपना अस्तित्व कहीं।
ना खो देना कहीं मुझे झूठे अभिमान में
जिंदा रखना हमेशा मुझे अपने स्वाभिमान में।
मैं हिंदुस्तान की पहचान हिंदी हूं,
मैं हिंदुस्तान की आवाज़ हिंदी हूं।
मैं राष्ट्र की माता हिंदी हूं,
मैं राष्ट्र का धरोहर हिंदी हूं।
स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
#hindidiwas #हिन्दी