Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
पाप और पुण्य से परे - Anujeet Iqbal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

पाप और पुण्य से परे

  • 258
  • 5 Min Read

पाप और पुण्य से परे

हे महायोगी
जैसे बारिश की बूंदें
बादलों का वस्त्र चीरकर
पृथ्वी का स्पर्श करती हैं
वैसे ही, मैं निर्वसन होकर
अपना कलंकित अंतःकरण
तुमसे स्पर्श करवाना चाहती हूं

तुम्हारा तीव्र प्रेम, हर लेता है
मेरा हर चीर और आवरण
अंततः बना देता है मुझे
“दिगंबर”

थमा देना चाहती हूं अपनी
जवाकुसुम से अलंकृत कलाई
तुम्हारे कठोर हाथों में
और दिखाना चाहती हूं तुमको
हिमालय के उच्च शिखरों पर
प्रणयाकुल चातक का “रुदन”

मैं विरहिणी
एक दुष्कर लक्ष्य साधने को
प्रकटी हूं इन शैलखण्डों पर
और प्रेम में करना चाहती हूं
“प्रचंडतम पाप”
बन कर “धूमावती”
करूंगी तुम्हारे “समाधिस्थ स्वरूप” पर
तीक्ष्ण प्रहार
और होगी मेरी क्षुधा शांत


हे महायोगी, पाप और पुण्य से दूर
मेरा उन्मुक्त प्रेम
नशे में चूर रहता है

अनुजीत इकबाल


धूमावती- दस महाविद्याओं में पार्वती का एक रूप, जिसने भूख लगने पर महादेव का भक्षण किया था।

FB_IMG_1581068082739_1599164388.jpg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

अद्भुत..!

Anujeet Iqbal3 years ago

धन्यवाद आदरणीय

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 4 years ago

शानदार

Anujeet Iqbal4 years ago

धन्यवाद

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

behtreen awsome

Anujeet Iqbal4 years ago

यह प्रतियोगिता के लिए थी।

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg