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कब - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

कब

  • 119
  • 2 Min Read

समय के चलते चक्कर को।
मैं और तुम के अंतर को
बोलो कब पहचानोगे
बोलो कब तुम मानोगे

बढ़ते पल पल दंगो को।
राजनीति में नँगो को
बोलो कब सम्भालोगे
बोलो कब मैल निकालोगे

घटी बढ़ती बात को
बाहर होती औकात को
बोलो कब तुम नापोगे
ईश्वर को कब जपोगे - नेहा शर्मा

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अति सुन्दर. अंतिम शब्द "जपोगे" की जगह "साधोगे" कैसा रहेगा"

संदीप शिखर

संदीप शिखर 3 years ago

लाजवाब जी

नेहा शर्मा3 years ago

जी बहुत बहुत शुक्रिया

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

सुंदर है

नेहा शर्मा3 years ago

shukriya

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