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मेरी दादी - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

मेरी दादी

  • 218
  • 10 Min Read

25 अगस्त 2020
मंगलवार
संस्मरण
'
मेरी दादी'
मेरा अधिकांश बचपन ग्रह जनपद हरदोई में बीता. हमारी दादी का व्यक्तित्व प्रभावशाली था, वे पढ़ी लिखी भी थीं और घर में किसी की मजाल नहीं थी कि उनकी बात न माने, पास ही हमारा गाँव है जहां से बहुत से लोग, रिश्तेदार आते जाते रहते थे, महाराजिन का 'चौका' काफ़ी देर तक चलता रहता था.
घर में 'कल्याण' और गीताप्रेस की अन्य किताबें नियमित आती थीं. वह पढ़ती थीं साथ में हम लोग भी.
उनकी नित्य पूजाऔर' हवन' प्रतिदिन करीब 12 बजे तक चलता था, हम लोग 'प्रसाद' की प्रतीक्षा में रहते थे. तब वे कटोरी में चाय और फलाहार करती थीं.
वे शहर के 'आर्यसमाज' की प्रधाना भी थीं. उनसे मिलने महिलाएं आती थीं. सभी लोग बहुत सम्मान करते थे.
. बाबा शहर के प्रतिष्ठित वकीलों में से थे.उनका दफ्तर और ला की किताबें शीशे की अलमारियों में अभी भी हैं.
घर में प्याज़, लहसुन निषिद्ध था. बाबा से मिलने शहर और बाहर के बहुत से लोग आते थे, उनकी व्यवस्था भी दादी देखती थीं.
दादी के कमरे में' शतरंज' बनी हुई थी. केवल मोहरों की आवश्यकता होती थी, हम लोग उनके साथ दोपहरी को शतरंज खेलते थे. घर में 'महाभारत' भी थी जिसे हम लोग और दादी अक्सर पढ़ते थे. घर के अन्दर महाभारत निषिद्ध समझी जाती थी, लेकिन दादी का कहना था कि वे यह, सब नहीं मानतीं. हम लोगों को' युद्ध' के पर्व पढ़ने में बहुत मज़ा आता था, करीब करीब हर पन्ना याद सा हो गया था.
जब हमारा परिवार कानपुर चला गया तब वे कार्तिक मास में गंगा स्नान करने आती थीं. मैं भी रोज़ 5बजे सुबह उनके साथ जाता था. तब नदी का पाट बड़ा था. स्नान करके 'गंगापुत्र' के तख्त पर शीशे में बाल काढ़ना, तिलक लगाना अच्छा लगता था, लौट कर उनकी पूजा, हवन, प्रसाद आदि यथावत चलते थे.
गर्मी की छुट्टियों में हम लोग हरदोई जाते थे. दिल्ली से बुआ जी और उनका बेटा आ जाता था, और शतरंज, कहानी, किस्से सुनने आदि का क्रम शुरू हो जाता था.
कानपुर आने पर दादी
हरदोई का विशाल घर, बहुत से लोगों से बातचीत, आदि  मिस करती थीं और जल्दी ही वापसी के लिए कहती थीं.

उन्होंने करीब 83 वर्ष की आयु पायी, वे अन्तिम कुछ महीनों को छोड़कर सक्रिय रहीं औरअपनी दिनचर्या का
भी पालन किया.
हरदोई जाने पर उनके कमरे में बनी ' शतरंज', विशाल आंगन की तुलसी उनकी याद ताज़ा कर देते हैं.

स्वरचित
कमलेश चन्द्र वाजपेयी

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

शत शत नमन

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

शत शत नमन

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

Sudhir Ji Bahot Dhanyavad !

डॉ स्वाति जैन

डॉ स्वाति जैन 3 years ago

उस समय में भी आपकी दादी बहुत ही सशक्त व्यक्तित्व रहीं होंगी तब तो आज भी आप इतना सुंदर संस्मरण लिख सके

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

Swati Ji .DHANYAVAD....!

Anjani Tripathi

Anjani Tripathi 3 years ago

बहुत भावनात्मक है

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

जी.. बहुत धन्यवाद..!

दादी की परी
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