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रात की बात - Radha Shree Sharma (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

रात की बात

  • 217
  • 5 Min Read

रात की बात

हमने पूछा रात से, नाईट हुई या नहीं अभी।
रात कहती चौंक कर हमने अभी देखा नहीं।
वैसे जरा तुम ये कहो ये नाईट है भला क्या बला?
कैसी ये दिखती है? कैसा रंग रूप है इसका पला?

हमने पूछा तुम कैसी रात हो?
कैसे तुम्हें ये नहीं पता?
तुमसे ही तो है अंधेरा,
तुमको ही तो रात कहा।
रात बोली ये कब हुआ?
हमको तो तनिक पता ना चला?
ये दुनियां भी कहती है क्या?
क्या क्या जाने मेरा नाम रखा?

हैरान होकर फिर से बोली
मानो खुद से ही किया हो मशवरा।
अरे तुम ये क्या कहती हो?
हमसे भला कहाँ है अंधेरा?
चांद और तारों को छोडो,
धरती पर भी है उजियारा।
हम तो यूँ ही बदनाम हुए,
खाया माल तो काल ने सारा।।

अँधियारा तो फैलाया है,
छल, कपट, पाखंड, दम्भ ने।
कालिख पोती है मुँह पर,
तुम्हारे ही क्रोध, अहम और घमंड ने।
नाम हमारा लेकर के
काले काम किए तुमने।
वरना हम तो आए धरा पे,
सुनहरे सपनों से तुम्हें मिलाने।
चांद तारे तुम्हें दिखा कर,
निराशा में एक नई आस जगाने।।

— राधा श्री शर्मा

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शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

वाह सुंदर

Radha Shree Sharma3 years ago

😊 😊 😊

Rashmi Sharma

Rashmi Sharma 3 years ago

बहुत खूब

Radha Shree Sharma3 years ago

आभार रश्मि जी 🌹 🙏 🌹

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

waah raat ki ye pribhasha bhi hai.. bahut acha laga padhkar. badhiya rachna 👌🏻

Radha Shree Sharma3 years ago

बहुत आभार आपका 🙏 🌹 🙏

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