कवितालयबद्ध कविता
# बला का जूता(प्रतियोगिता हेतु)
रुग्ण, रूप में रौंदता सा ये समय है,
हमारे कर्मों से उपजी, जो ये महाप्रलय है,
मेरा तेरा नहीं, संकट है पूरे विश्व पर,
लगा ग्रहण मानो, मनुष्य के अस्तित्व पर,
ये है घड़ी कि, भूल भेद भिन्नताएं,
रुकें, झुकें, दें हाथ,ये ढांढस बंधाएं,
कि अब भी हैं हालात, हमारे बूते में,
कितना भी रहे दम ' बला ' के जूते में,
हम एकजुट,जीतेंगे, दमन के हर इक पैंतरे से,
हम नर ही नारायण हैं जो अब इक दूसरे के!
Dr Swati Jain Damoh (स्त्री रोग विशेषज्ञ)