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बला का जूता - डॉ स्वाति जैन (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बला का जूता

  • 224
  • 3 Min Read

# बला का जूता(प्रतियोगिता हेतु)

रुग्ण, रूप में रौंदता सा ये समय है,
हमारे कर्मों से उपजी, जो ये महाप्रलय है,

मेरा तेरा नहीं, संकट है पूरे विश्व पर,
लगा ग्रहण मानो, मनुष्य के अस्तित्व पर,

ये है घड़ी कि, भूल भेद भिन्नताएं,
रुकें, झुकें, दें हाथ,ये ढांढस बंधाएं,

कि अब भी हैं हालात, हमारे बूते में,
कितना भी रहे दम ' बला ' के जूते में,

हम एकजुट,जीतेंगे, दमन के हर इक पैंतरे से,
हम नर ही नारायण हैं जो अब इक दूसरे के!

Dr Swati Jain Damoh (स्त्री रोग विशेषज्ञ)

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

वाह वाह

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

कम शब्दों में अत्यंत सुन्दर रचना..!

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत सुंदर रचना

प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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माँ
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तन्हाई
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