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किसकी आज़ादी... - Gaurav Shukla (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

किसकी आज़ादी...

  • 216
  • 4 Min Read

तुमने कहा स्कर्ट पहन लो,
तुम्हें मेरी बात अच्छी लगती है,
तुम मेरे पास बैठ कर सब दर्द समझते हो,
तुम्हें मेरी जात अच्छी लगती है,
तो बताओ,
ये आज़ादी देने का जो दिखावा करते हो,
क्या ये किसी की अमानत है,
वर्षों से चली आ रही प्रथा में थोड़ी रियायत दो.... तो लानत है,

हां माना,
,
तुम्हें मुझसे प्यार बहुत है,
तुम्हारे आगे मेरे जज़्बात बहुत हैं !
लेकिन क्यों तुम हमें हमेसा ख़ुद की जिम्मेदारी और काम समझते हो,
और औरत को बराबर न समझकर,समान समझते हो?

चलो मान लिया ख़ुद को तुम्हारे बराबर,
तो क्या तुम एक बात समझते हो?
इस शहर में जिस हाँथ में शिक्षा होनी थी,
घर की जिम्मेदारी से जकड़े वो हाँथ...वो हाँथ समझते हो...?

हमनें वादा किया था एक दूसरे से जो बराबरी का,
वो फिर दहेज़....!!!...तो फिर क्या?
... समाज समझते हो?

वो वादा जो,
मैं आपको,
वो मुझे आप समझते हो....?

✍️ गौरव शुक्ला'अतुल'

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Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 4 years ago

बहुत बढ़िया गौरव जी...

Gaurav Shukla4 years ago

शुक्रिया

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

बहुत खूब गौरव शुक्ला। आज़ादी का मतलब इसी से लगा लिया जाता है आजकल की हमने ऐसे करने दिया।

Gaurav Shukla4 years ago

हम उस जगह आ गए जहाँ हमनें आपसे जो छीन लिया है उसी को वापस करना ही आज़ादी समझतें हैं ।दुर्भाग्य है।

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