कविताअतुकांत कवितालयबद्ध कविता
आयोजन- सा रे गा मा
समूह - लफ्जों की उड़ान...
(अधूरी कहानी भाग - १)
विधा- काव्य गीत
विषय- सावन सी भिंगा दो ना
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हे प्रीतम कार्तिके तुम
प्रेम वाटिका आओ ना
स्नेहमय की वर्षा से तुम
तन मन को भिंगा दो ना
तन को अंकपाश भर
हिय की तपन मिटाओ ना
सावन की भरी छटाओं में
मन की तृष्णा बुझाओ ना
प्रेम की घनघोर घटाओं से
तन मन को नहलाओ ना
अधर की बूंदों से तुम
सावन सी भिंगाओ ना
अंग अंग की तपिश पर
हिम को पिघलाओ ना
प्रेम की अद्भुत आभा को
आकर तुम छितराओ ना
निश्छल प्रेम की छतरी
हृदय तल पर फैलावो ना
आकर मेरी अंतर्मन में तुम
वत्सल प्रेम जलाओ ना
मैं तुममे तल्लीन हो जाऊं
प्रणय सिंधु बन जाओ ना
प्रेम गीत के भाव सजा कर
सावन सी बरस जाओ ना।
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@©✍️ राजेश कु० वर्मा 'मृदुल'
गिरिडीह (झारखंड)
📱7979718193
शानदार पंक्तियां,बेहतरीन अभिव्यक्ति👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👍🏻👍🏻
हृदय तल से आभार महोदय
लाज़वाब लेखनी....शब्द संयोजन भी कमाल है...वाह वाह
धन्यवाद महोदय श
सुंदर पंक्तियां
जी सादर धन्यवाद।
जी सादर आभार
बहुत ही सुन्दर रचना सुन्दर शब्द संयोजन
बहुत-बहुत शुक्रिया आप सब की सराहना हमारी लेखनी को बल देती है
सुन्दर गीत योजना
हृदय तल से आभार महोदय
Nice post
Thank you for your appreciation
बहुत खूब
सादर आभार एवं धन्यवाद महोदय